मणिपुर में हिंसा के दौर को 80 दिनों से अधिक हो चुके हैं, इस बीच में हमारे प्रधानमंत्री अनेक विदेशी दौरे कर चुके हैं और तमाम नेताओं के साथ खिलखिलाते हुए तस्वीरें खिंचवा चुके हैं। इन 80 दिनों में हमारे प्रधानमंत्री देश में रहते हुए भी लगातार चुनावी मोड में रहते हुए तमाम राज्यों के दौरे करते रहे हैं, विपक्षी दलों पर फब्तियां कसते रहे हैं, विपक्षी दलों की एकता को भ्रष्टाचारियों का मिलाप बता चुके हैं और वन्दे भारत ट्रेनों को हरी झंडी दिखाते रहे हैं। पर लगातार जलते मणिपुर को नजर-अंदाज करते रहे हैं।
इस बीच में समाचारों के अनुसार केवल एक बार गृह मंत्री से प्रधानमंत्री ने मणिपुर मामले पर चर्चा की है। गृहमंत्री एक बार मणिपुर का दौरा कर चुके हैं पर नतीजा सिफर रहा है। मणिपुर के मुख्यमंत्री से लेकर हमारे प्रधानमंत्री तक को मणिपुर की असली जानकारी है ही नहीं। दरअसल हमारा देश मोदी राज में एक बड़े रंगमंच में तब्दील हो गया है, जिसमें सत्ता केवल रटी-रटाई स्क्रिप्ट पढ़ती है और कैमरे के सामने भौंडा अभिनय करती है। रंगमंच का पर्दा गिरते ही सब सामान्य हो जाता है।
प्रधानमंत्री जी ने संसद को लोकतंत्र का मंदिर तो बताया, पर संसद के बाहर मीडिया के सामने मणिपुर हिंसा के दौर की 140 से अधिक हत्याओं को केवल एक विडियो में विलीन कर दिया। उन्हें मणिपुर हिंसा या सामाजिक अशांति से कोई परहेज नहीं है, पर महिला उत्पीड़न पर वही रटी-रटाई स्क्रिप्ट और भौंडा अभिनय देखने को मिला। उन्होंने कहा, उन्हें दुख है गुस्सा भी है, पूरा देश इस घटना से शर्मसार है। इसके बाद फिर वही ऑफ-ट्रैक वक्तव्य- दोषियों को सख्त सजा मिलेगी।
फिर मीडिया पर और सोशल मीडिया पर पूरे दिन इस वक्तव्य को प्रधानमंत्री की वाहवाही के साथ प्रस्तुत किया गया। मई की घटना की पुलिस ने शिकायत भी दर्ज नहीं की थी, दो दिनों पहले ही अपराधी पकड़ने का अभियान शुरू किया गया। दोषियों से पहले पुलिसवालों, स्थानीय प्रशासन और सरकार के साथ ही केंद्र के गृह मंत्रालय पर भी कार्रवाई की जानी चाहिए– इस मामले में सभी अपराधी हैं|
प्रधानमंत्री जी को महिला उत्पीड़न पर यदि सही में दुःख और गुस्सा आता है, पूरा देश यदि ऐसी घटनाओं से सही में शर्मसार होता है, तब इस दुःख, गुस्सा और शर्म का इजहार हरेक दिन कम से कम 86 बार होना चाहिए, क्योंकि नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार हमारे देश में हरेक दिन औसतन 86 महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं। यह केवल पुलिस थानों में दर्ज आंकड़े हैं, जाहिर है बलात्कार के मामले इससे बहुत अधिक होंगे। ब्यूरो के वर्ष 2021 के आंकड़ों के अनुसार देश में कुल 31677 बलात्कार के मामले दर्ज किये गए, जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या 28046 थी।
प्रधानमंत्री मोदी के न्यू इंडिया में बलात्कार की धमकी, वैश्या, बाजारू, बिकी हुई, जैसे लांछन और दूसरी धमकियां, जान से मारने की धमकी, गोली से उड़ाने की धमकी, कब्र से लाश निकाल कर बलात्कार की धमकी, बदला लेंगें, सबक सिखाना है, देशद्रोही, पाकिस्तान भेज देंगें, टुकड़े-टुकड़े गैंग इत्यादि राष्ट्रभाषा और राजभाषा दोनों ही बन चुका है। प्रधानमंत्री भी ऐसी भाषा का प्रयोग करते हैं और गृहमंत्री तो केवल इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। दूसरे छोटे-बड़े मंत्री, बीजेपी के प्रवक्ता और दूसरे नेता भी इसी राह पर हैं। जाहिर है, सत्ता ही जब ऐसी भाषा का प्रयोग कर रही हो तो उसे कोई आपत्ति नहीं होगी, पर आश्चर्य यह है कि न्यायपालिका और चुनाव आयोग को भी तब तक आपत्ति नहीं होती जब तक ऐसे मधुर प्रवचन बीजेपी के लोगों के मुखारविंद से झड़ते हैं।
कभी जेएनयू, कभी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, कभी जामिया मिलिया के छात्रो और विशेष तौर पर छात्राओं के लिए यह सब हम सुनते आ रहे हैं और शाहीनबाग के अभूतपूर्व आन्दोलन के बाद तो यहां की महिलाओं का स्वागत ही सत्ताधारी ऐसे प्रवचनों से करते थे। जब तक एक नेता के ऐसे प्रवचन पर बहस शुरू होती है, तब तक कई और नेता यही कारनामा दोहरा चुके होते हैं। जाहिर है, इस न्यू इंडिया में महिलाओं और लड़कियों को खुले आम ह्त्या और बलात्कार की धमकी देने और वैश्या कहने का एक रिवाज सा चल पड़ा है, और इसे सरकारी और तमाम संवैधानिक संस्थाओं का पुरजोर संरक्षण भी प्राप्त है। एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार ट्विटर पर महिला नेताओं को हत्या, बलात्कार की धमकी या फिर अभद्र शब्दों का प्रयोग भारत में बहुत सामान्य है। ऐसा लगभग हरेक देश में होता है, पर हमारा देश जो न्यू इंडिया है, उसमें इसकी संख्या अन्य देशों की तुलना में बहुत अधिक है।
आश्चर्य यह है कि इसके बारे में महिला राजनितिज्ञों की तरफ से कोई आवाज भी नहीं उठती। एक रिपोर्ट में भारत को महिलाओं पर यौन हिंसा के सन्दर्भ में वर्ष 2019 के दौरान सबसे असुरक्षित देशों की सूची में दूसरा स्थान दिया गया था, वर्ष 2018 में इस सूची में भारत का स्थान चौथा था। इस रिपोर्ट आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट के अनुसार, अराजकता बढ़ने के कारण महिलाओं पर यौन हिंसा बढ़ती जा रही है।
नेशनल कमीशन फॉर वीमेन के अनुसार वर्ष 2022 में 31000 शिकायतें दर्ज की गईं थीं, यह संख्या वर्ष 2014 के बाद से सर्वाधिक संख्या है। इन शिकायतों में से 54.5 प्रतिशत शिकायतें अकेले उत्तर प्रदेश से संबंधित हैं। कुल 1623 शिकायतें पुलिस के विरुद्ध हैं- जहां पुलिस ने या तो मामला दर्ज नहीं किया या फिर हवालात में महिलाओं का उत्पीड़न किया। नेशनल क्राइम रिकार्ड्स ब्यूरो के अनुसार हमारे देश में हरेक घंटे महिलाओं के विरुद्ध लगभग 50 अपराध किये जाते हैं और एक लाख महिलाओं में से 64.5 महिलायें इसका शिकार होती हैं। महिलाओं पर अपराध के सन्दर्भ में उत्तर प्रदेश सबसे आगे है।
मोदी राज में केवल महिलाओं पर अपराध ही नहीं बढ़े हैं, बल्कि महिलायें हरेक स्तर पर समाज में पिछड़ रही हैं और पितृसत्तात्मक सोच समाज पर पहले से अधिक हावी होती जा रही है। वर्ल्ड इकॉनोमिक फोरम द्वारा जारी किये गए वर्ष 2023 के जेंडर गैप इंडेक्स में कुल 146 देशों की सूचि में भारत 127वें स्थान पर है। हमारे पड़ोसी देशों में केवल पाकिस्तान ही 142वें स्थान पर है, यानि हमसे भी पीछे है। इस इंडेक्स में बांग्लादेश 59वें, भूटान 103वें, चीन 107वें, श्रीलंका 115वें और नेपाल 116वें स्थान पर है।
इक्वल मीजर्स 2030 नामक एक गैर-सरकारी संस्था, सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स जेंडर इंडेक्स नामक रिपोर्ट को हरेक वर्ष प्रकाशित करता है। सयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स में लैंगिक समानता भी शामिल है और 193 देशों ने, जिसमें भारत भी शामिल है, इस पर हस्ताक्षर किये हैं। इसके अनुसार वर्ष 2030 तक हरेक देश को अपने यहां लैंगिक असमानता समाप्त करना है। इक्वल मीजर्स 2030 ने इसी सन्दर्भ में वर्ष 2022 के दौरान 144 देशों में लैंगिक समानता के आकलन के आधार पर एक इंडेक्स तैयार किया है। इसमें लैंगिक समानता की स्थिति के आधार पर देशों को 0 से 100 के बीच अंक दिए गए हैं- 100 अंक सबसे अधिक समानता और 0 कोई समानता नहीं दर्शाता है। इस इंडेक्स के अनुसार 144 देशों की सूची में भारत 91वें स्थान पर है और इसे 64 अंक दिए गए हैं।
हमारे प्रधानमंत्री जी के लिए चुनाव जीतना ही एकमात्र लक्ष्य है, फिर जनता जी रही है या मर रही है, इससे फर्क ही क्या पड़ता है? जनता के लिए भी राम मंदिर और हिन्दू-मुस्लिम का ध्रुवीकरण ही सबसे बड़ा मुद्दा है।