नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र से पहले जैसे ही 26 दलों का विपक्षी गठबंधन INDIA बना और बीजेपी ने भी एनडीए के 38 दलों के कुनबे की मीटिंग बुलाई तो कई क्षेत्रीय दलों ने दोनों गठबंधनों से खुद को अलग रखा लेकिन दस दिनों के अंदर ही दक्षिण में सियासी समीकरण और वहां की भावी तस्वीर बदली-बदली हुई दिखने लगी है। दिल्ली अध्यादेश के मुद्दे पर राज्यसभा में कमजोर दिख रही बीजेपी का साथ देने के लिए आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी YSR कांग्रेस ने खुद ही अपना हाथ बढ़ा दिया है। दूसरी तरफ, केसीआर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर कांग्रेस के साथ खड़े दिख रहे हैं।
BJP-YSRCP में क्या गुप्त खिचड़ी
18 जुलाई को जब दिल्ली में एनडीए के 38 घटक दलों की मीटिंग बुलाई गई थी, तब यह संभावना जताई जा रही थी कि बीजेपी दक्षिण की दो पार्टियों को इसमें शामिल होने का न्योता भेजेगी। इनमें से एक कर्नाटक की जेडीएस थी, जिसके साथ बीजेपी पहले भी चुनाव लड़ी है और कर्नाटक में सरकार बना चुकी है और दूसरी आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी है, जो पहले भी एनडीए गठबंधन में शामिल रह चुकी है।
जगनमोहन रेड्डी का क्या इरादा
जगनमोहन रेड्डी बीजेपी से कोई दोस्ती किए बिना ही अपनी शर्तों पर मुद्दों के आधार पर केंद्र की बीजेपी सरकार को समर्थन देते रहे हैं। चाहे वह राष्ट्रपति के चुनाव का मामला हो या फिर पिछले साल ही अविश्वास प्रस्ताव का मामला रहा हो। जगनमोहन रेड्डी चाहते हैं कि वह चुपचाप केंद्र को समर्थन देते रहें और बदले में केंद्र सरकार उसे आर्थिक मोर्चे पर सहयोग करती रहे।
बीजेपी भी चाहती है कि उसे दक्षिण में कोई मजबूत साथी मिले, जिसके दम पर वह दक्षिण में विस्तार कर सके। कर्नाटक को छोड़ दें तो दक्षिण के बाकी राज्यों में बीजेपी के लिए सत्ता पाना तो दूर अच्छी संख्या में प्रतिनिधित्व पाना भी फिलहाल दूर की कौड़ी लगती है। इसलिए बीजेपी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में YSRCP को एक भरोसेमंद और मजबूत साथी के विकल्प के रूप में देख रही है।
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक चुनावों में कांग्रेस की जीत के बाद और हालिया राजनीतिक घटनाक्रम से दक्षिण में कांग्रेस में भी जान आई है। ऐसे में कांग्रेस, टीडीपी और केसीआर की पार्टी (BRS) से मुकाबला करने के लिए अगर जगनमोहन रेड्डी और बीजेपी दोस्ती करते हैं तो दोनों दलों के लिए यह विन-विन कंडीशन हो सकती है।
हालांकि, आंध्र प्रदेश में बीजेपी और जन सेना (एक्टर पवन कल्याण की पार्टी) का एक गठबंधन हैं, और वे आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव साथ-साथ लड़ने का ऐलान कर चुके हैं लेकिन जब से डी पुरंदेश्वरी को बीजेपी ने राज्य इकाई का चीफ बनाया है, तब से समीकरण में गांठ के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं।
बीजेपी का अगला मिशन
जगनमोहन जैसे साथी को लेकर बीजेपी दक्षिण के अन्य राज्यों तेलंगाना और तमिलनाडु में भी आक्रामक होना चाहती है। तमिलनाडु में वह पहले से ही AIADMK के साथ गठबंधन में है। बता दें कि तेलंगाना में इसी साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं, जबकि अगले साल लोकसभा चुनावों के साथ ही आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। बीजेपी ने हाल के दिनों में दक्षिण में अपनी आक्रामकता को धार दिया है। लिहाजा, वह उसे नतीजों में बदलते हुए देखने को बेकरार है।
किसकी कितनी ताकत?
चुनावी आंकड़ों पर बात करें तो 2019 के चुनाव में आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में से 22 पर जगनमोहन रेड्डी की पार्टी ने जीत दर्ज की थी, जबकि सिर्फ तीन सीटों पर चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को जीत मिली थी। टीडीपी को 12 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था। YSRCP को कुल 47.15 फीसदी, जबकि TDP को 44.59 फीसदी वोट मिले थे। इनके अलावा जनसेना पार्टी को 6.30 फीसदी, कांग्रेस को 1.29 फीसदी और बीजेपी को महज 0.96 फीसदी वोट ही मिले थे। ऐसे में बीजेपी एक मजबूत और युवा साथी के साथ दोस्ती पक्की करनी चाहती है।