प्रयागराज/नोएडा/लखनऊ। पूरे देश को दहला देने वाले निठारी कांड के दोनों आरोपियों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बरी कर दिया. इस फैसले के बाद सारे पीड़ित परिवार हैरान हैं. हाई कोर्ट ने आरोपियों को बरी करते हुए कहा कि सीबीआई इस मामले की जांच के दौरान अहम सबूत जुटाने में नाकाम रही. अब एक बार फिर ये मामला ऐसे मोड पर पहुंच गया है कि जो सवाल निठारी कांड का खुलासा होने पर पुलिस के सामने था, एक बार फिर वही सवाल आज भी सामने है. ये मामला भी आरुषि तलवार केस की तरह ही निकला, क्योंकि निठारी के सारे राज भी राज ही रह गए.
7 सितंबर 2014, रात के करीब 9.30 बजे
आज से ठीक 9 साल, 1 महीना और 9 दिन पहले वो रविवार की रात थी. जगह थी मेरठ सेंट्रल जेल. सारी तैयारी पूरी हो चुकी थी. सुरेंद्र कोली को डासना जेल से निकाल कर मेरठ सेंट्रल जेल पहुंचाया जा चुका था. जल्लाद तक आ चुका था. बस, सुबह होने का इंतजार था. सुबह होते ही सुरेंद्र कोली फांसी पर लटकने जा रहा था. रविवार की देर रात कोली की फांसी की खबर अचानक मीडिया में सुर्खियां बन गईं. ये खबर जानी-मानी वकील इंदिरा जयसिंह तक भी पहुंची. मगर चूंकि रविवार था, लिहाजा कोर्ट बंद थी. इंदिरा जयसिंह रात को ही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से मिलने का वक्त मांगती हैं. इसके बाद रात करीब पौने ग्यारह बजे सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर जस्टिस के घर पर स्पेशल अदालत बैठती है. और फिर सुबह साढ़े चार बजे मेरठ सेंट्रल जेल को ख़बर दी जाती है कि कोली की फांसी रोक दी जाए.
नौ साल एक महीना और आठ दिन पहले जो सुरेंद्र कोली फांसी के तख्ते से महज कुछ घंटे दूर था, वही सुरेंद्र कोली निठारी कांड की हर फांसी की सजा से 16 अक्टूबर को आजाद हो गया. अब जरा सोचिए, अगर सात सितंबर 2014 यानी आज से नौ साल, एक महीना और नौ दिन पहले रविवार की उस रात कोली को फांसी पर लटका दिया जाता तो? अब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले से कम से कम इस वक्त ये साफ हो गया कि कोली के खिलाफ निठारी कांड से जुड़े एक भी इल्जाम सीबीआई अदालत में साबित नहीं कर पाई. तो क्या नौ साल एक महीना और नौ दिन पहले एक बेकसूर को फांसी पर चढाया जा रहा था?
कुछ यूं सामने आया निठारी कांड का सच
ये सवाल खास तौर पर सीबीआई और कानून के जानकार पंडितों से है. क्या निठारी कांड में सीबीआई की जांच इतनी कमजोर थी? या फिर अदालत को ही वो सबूत नजर नहीं आए. ये चुभता हुआ सवाल इसलिए जरूरी है क्योंकि जिस निठारी कांड ने 19 साल पहले पूरे देश को खौला दिया था, जिस निठारी कांड की डेढ़ साल तक सीबीआई ने अंधाधुंध तफ्तीश की थी, आज 19 साल बाद उस निठारी का सच कुछ यूं सामने आया है कि 19 केस में से 1 को छोड दें, तो बाकी सभी 18 केसों में सुरेंद्र कोली और उसका मालिक मोनिंदर सिंह पंधेर अदालत से बरी हो कर साफ बच गया. शायद ये देश का इकलौता ऐसा मामला है, जिसमें किसी मुजरिम को 19 में से 14 केस में फांसी की सजा सुनाई गई. और वो 14 के 14 फांसी की सजा से साफ बच निकला.
क्या अब आजाद हो जाएंगे सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर!
दरअसल, 16 अक्टूबर सोमवार को इलाहाबाद हाई कोर्ट में निठारी कांड पर एक अहम फैसला आना था. ये फैसला सीबीआई की निचली अदालत के उस फैसले पर आना था, जिसमें निठारी के 12 अलग-अलग मामलों में सुरेंद्र कोली को 12 फांसी की सजा सुनाई गई थी. जबकि मोनिंदर सिंह पंधेर को दो मामलों में फांसी दी गई थी. कोली और पंधेर दोनों ने ही गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट के इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. एक महीना पहले सितंबर में इस पर कोर्ट में बहस पूरी हो चुकी थी. कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. 16 अक्टूबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसी मामले में अपना फैसला सुनाया. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को 12 के 12 मामलों में जबकि मोनिंदर सिंह पंधेर को दोनों मामलों में मिली फांसी की सजा को रद्द करते हुए दोनों को सीधे बरी कर दिया. अब ऐसे में सवाल ये है कि क्या सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर अब आजाद हो जाएंगे? दोनों जेल से बाहर आ जाएंगे? तो इसे समझने के लिए निठारी कांड के सारे केस को समझना जरूरी है.
ये वही तारीख थी, जिस दिन इराक में सद्दाम हुसैन को फांसी दी गई थी. दुनिया समेत हमारे देश की तमाम मीडिया में भी सद्दाम की फांसी सुर्खियों में थी. इसी खबर के बीच अचानक दिल्ली से मुश्किल से 25 किलोमीटर की दूरी पर नोएडा में बसे निठारी गांव से एक दहलानेवाली खबर आती है. खबर ये कि निठारी में एक नाले से दर्जनों पॉलीथिन में छोटे-छोटे बच्चों के कंकाल मिले हैं. निठारी की जिस डी-5 कोठी के पीछे वाले नाले से ये कंकाल मिले थे, उस कोठी का मालिक मोनिंदर सिंह पंधेर था. जबकि सुरेंद्र कोली उसी कोठी में रसोइया था. 29 दिसंबर की शाम को ही दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया.
मामले की शुरुआती जांच नोएडा पुलिस ही कर रही थी. तफ्तीश के दौरान बरामद कंकाल और निठारी थाने में दर्ज गुमशुदा बच्चों की तादाद को देखते हुए हिसाब लगाया गया कि इलाके से कुल 19 बच्चे गायब हुए थे. यानी ये सारे कंकाल उन्हीं 19 बच्चों के हैं. इसी के बाद नोएडा पुलिस ने 19 बच्चों के कत्ल के सिलसिले में अलग-अलग 19 एफआईआर दर्ज की.
CBI को सौंप दी गई थी मामले की जांच
चूंकि इस केस ने पूरे देश को डरा दिया था. लिहाजा बाद में मामले की जांच नोएडा पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दी गई. शुरुआती जांच के बाद सीबीआई ने 19 केस में से 3 केस खारिज कर दिए थे. यानी अब कुल 16 केस और 16 एफआईआर थी. इन्हीं 16 केस के आधार पर सीबीआई ने अपनी चार्जशीट तैयार की. चार्जशीट में सुरेंद्र कोली और मोनिंदर सिंह पंधेर को आरोपी बनाया गया. चार्जशीट में सीबीआई ने जो कहानी बताई वो ये कि कोठी नंबर डी-5 के आस-पास जो भी बच्चे खेलने आते, उन्हें सुरेंद्र कोली कोठी के अंदर ले जाता. फिर गला घोंट कर कत्ल करने के बाद उनके साथ जबरदस्ती करने की कोशिश करता. कुछ मौकों पर तो उसने कुछ बच्चों के अंगों को काट कर कुकर में पका कर खाया भी. जबकि मोनिंदर सिंह पंधेर को भी तमाम हत्याओं में आरोपी बनाते हुए ये कहा गया कि वो कोठी पर अक्सर कॉल गर्ल को बुलाया करता था और वहीं से कोली की हवस की कहानी शुरू हुई.
मुकदमे का ट्रायल गाजियाबाद में सीबीआई की अदालत में चला. मगर बाद में मोनिंदर सिंह पंधेर के खिलाफ कत्ल और रेप के सिर्फ 6 मामले ही साबित हुए. हालांकि इनमें से भी तीन मामलों में खुद सीबीआई कोर्ट ने ही सबूतों के अभाव में पंधेर को बरी कर दिया था. बाकी बचे तीन मामलों में पंधेर को फांसी की सजा सुनाई गई. पंधेर ने इस सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपील दायर की. तीन में से एक मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उसे कुछ साल पहले ही बरी कर दिया था.
अब पंधेर के खिलाफ सिर्फ दो मामले बचे थे. वो दो मामले जिनमें उसे सीबीआई की कोर्ट ने फांसी की सजा दी थी. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आज यानी 16 अक्टूबर को पंधेर को उन दोनों मामलों में फांसी की सजा को रद्द करते हुए बरी कर दिया. यानी निठारी केस में मोनिंदर सिंह पंधेर के खिलाफ जो कुछ 6 मामले थे, उन 6 के 6 में आज की तारीख में वो बरी हो चुका है. ऐसे में अगर कल या परसों वो डासना जेल से बाहर आ जाए, तो कोई हैरानी नहीं. अगर सीबीआई इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी देती है, जो कि वो देगी. तब भी फिलहाल पंधेर की रिहाई का रास्ता साफ हो चुका है. तो निठारी केस में पंधेर का हिसाब किताब तो पूरा हुआ.
सबूतों के अभाव में बरी हुआ कोली
अब कोली के बही खाते पर नजर डालते हैं. सुरेंद्र कोली के खिलाफ 16 कत्ल और 16 ही रेप के मामले दर्ज हुए थे. इन्हीं 16 मामलों में उसके खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई और फिर ट्रायल चला. इनमें से तीन मामलों में सीबीआई कोर्ट ने तीन अलग-अलग वक्त में कोली को फांसी की सजा सुनाई थी. बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उन तीनों ही मामलों में सबूतों के अभाव में फांसी को सजा को रद्द करते हुए उसे बरी कर दिया.
अभी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है रिंपा हलधर केस
रिंपा हलधर केस में सीबीआई की कोर्ट और इलाहाबाद हाई कोर्ट दोनों ने ही सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनाई थी. कोली ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की. लेकिन दो बार सुप्रीम कोर्ट ने उसकी इस अपील को भी खारिज कर दिया. फिर उसने तीसरी बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. इस दौरान चूंकि वक्त काफी बीत चुका था, लिहाजा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रिंपा हलधर केस में सुरेंद्र कोली की मौत की सजा को उम कैद में तब्दील कर दिया. लेकिन उम्र कैद की इस सजा के खिलाफ भी कोली सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. ये मामला अभी भी सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है।
16 केस में से 15 में बरी हो चुका है सुरेंद्र कोली
16 में से बाकी बचे 12 केस में गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने सुरेंद्र कोली को फांसी की सजा सुनाई थी. कोली ने इस फैसले को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. उसी पर आज यानी 16 अक्टूबर को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए 12 के 12 मामलों में निचली अदालत के फांसी के फैसले को रद्द करते हुए सुरेंद्र कोली को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया. तो इस तरह निठारी कांड के कुल 16 केस में से 15 में सुरेंद्र कोली बरी हो चुका है. अब सिर्फ एक केस बचा है, वही रिंपा हलधर केस, जो इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस एक केस की वजह से शायद सुरेंद्र कोली फिलहाल जेल से बाहर ना आ सके.
CBI ने ही की थी आरुषि केस की जांच
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला सीबीआई की जांच पर एक बार फिर से सवाल खड़े करता है. इसी निठारी से चंद किलोमीटर की दूरी पर आरुषी केस भी हुआ था. उसकी जांच भी सीबीआई के धुरंधरों ने की थी. लेकिन आज 15 साल बाद भी देश को ये पता नहीं कि आरुषि और हेमराज का कातिल है कौन? इत्तेफाक देखिए कि गाजियाबाद की जिस सीबीआई कोर्ट ने निठारी कांड में अपना फैसला सुनाया, और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उस फैसले को पलट दिया. उसी गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट ने ही आरुषि और हेमराज केस में आरुषि के माता-पिता को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. जबकि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दोनों को बरी कर दिया. ये मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.
कौन है निठारी कांड का गुनहगार?
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोली और पंधेर को बरी करते हए अपने फैसले में साफ-साफ कहा कि दोनों के खिलाफ सीबीआई कोई ठोस सबूत या गवाह अदालत के सामने पेश नहीं कर पाई. यहां तक कि फॉरेंसिक एवि़डेंस भी वो ढंग से कोर्ट के सामने नहीं रख सकी. ठीक आरुषि केस की तरह ही निठारी केस में भी सीबीआई के पास कहानियां तो बहुत सारी थी, मगर सबूत के नाम पर हाथ खाली. क्या सीबीआई ने शुरुआत से ही निठारी केस को हल्के में लिया था? महीनों तक निठारी में जो वो सबूत बटोरते हुए दिख या दिखाई जा रही थी, क्या वो सिर्फ तमाशा था? और सबसे बड़ा सवाल ये कि अगर कोली और पंधेर निठारी के गुनहगार नहीं हैं, तो फिर वो कौन हैं?