दिल्ली के निजामुद्दीन के रहने वाले सुरेंद्र राजपूत की उत्तराखंड में सिलक्यारा सुरंग में फँसे 41 मजदूरों को बचाने में अहम भूमिका रही। आखिर सभी की कोशिशें रंग लाई और 17 दिनों बाद सब सही सलामत बाहर निकल आए।
दिवाली के दिन 12 नवंबर 2023 की सुबह लैंड स्लाइड से सुरंग में मलबा भरने के कारण वहाँ काम कर रहे ये 41 लोग वहीं फँस गए थे। बाहर आने के बाद उनके लिए और उनके परिवार के लिए तो मंगलवार (28 नवंबर,2023) का दिन एक तरह से दिवाली की रोशनी लेकर आया।
उनकी जिंदगियों में बगैर किसी स्वार्थ के उजाला भरने वालों में इस बचाव अभियान में वैसे तो कई लोग शामिल रहे। लेकिन आखिर में आज से 17 साल पहले 21 जुलाई 2006 को हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्देहड़ी गाँव में 5 साल के प्रिंस के 50 फीट गहरे बोरवेल से निकालने वाली टीम का हिस्सा रहे सुरेंद्र राजपूत का तजुर्बा रंग लाया। रिपोर्ट्स के मुताबिक राजपूत 18 नवंबर को ही सिलक्यारा सुरंग पहुँच गए थे।
रैट माइनर्स के लिए बनाई पुली ट्रॉली
सिलक्यारा में सुरंग में फँसे 41 मजदूरों को बचाने में जब बड़ी-बड़ी आधुनिक मशीनें फेल हो गईं तो फिर रविवार यानी 26 नवंबर को साइट पर 6 ‘रैट होल’ माइनर्स की एंट्री हुई। झाँसी के जांबाज रैट माइनर्स परसादी लाल, राकेश और भूपेंद्र राजपूत वहाँ पहुँचे थे।
इन लोगों ने रैट माइनिंग के जरिए 21 घंटे में हाथ से ही 15 मीटर तक सुरंग खोद डाली। ये लोग शायद ये काम करने में सफल नहीं होते अगर इनके पास पुली ट्रॉली नहीं होती। और ये पुली ट्रॉली बगैर बुलाए वहाँ पहुँचे सुरेद्र राजपूत ने बना कर दी।
ट्राली से आसान हुआ मलबा निकालना
सुरेंद्र राजपूत के मुताबिक, उन्होंने मैनुअल ड्रिलिंग करने वाले रैट माइनर्स टीम के लिए 1.25 मीटर लंबी और 0.6 मीटर चौड़ी एक पुली ट्रॉली बनाई थी। चार बेयरिंग लगी इस ट्राली के जरिए ही मैनुअल ड्रिलिंग के बाद सुरंग के अंदर से मलबे को पाइप से बाहर निकाला गया।
एक बार में ही इस ट्रॉली से एक क्विंटल मलबा सुरंग से बाहर निकाला जाता था। इसके बाद ही सुंरग से मजदूरों के बाहर निकलने का रास्ता साफ हो पाया। राजपूत ये ट्रॉली इसलिए बना पाए क्योंकि उन्होंने 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र के हल्देहड़ी गाँव में प्रिंस को बचाने में भी अहम भूमिका निभाई थी।
तब पाँच साल का बच्चा प्रिंस अपने दोस्त के साथ खेलते हुए पास ही खुदे 60 फीट गहरे बोरवेल में जा गिरा था। तब राजपूत ने 60 मीटर गहरे कुएँ को दूसरे कुएँ से जोड़ने के लिए 10 फीट लंबी सुरंग बनाने का काम किया था। इसके बाद प्रिंस बोरवेल से सलामत बाहर आ पाया था।
सुरेंद्र राजपूत ने लगाई थी सिलक्यारा रेस्क्यू अभियान में शामिल होने की गुहार
सिलक्यारा सुरंग हादसे के 6 दिन बाद ही सुरेंद्र राजपूत सीधे दिल्ली से बचाव अभियान में सहयोग करने के लिए वहाँ पहुँच गए थे। वो बचाव एजेंसियों से अभियान में मदद करने का अनुरोध करते रहे।
वो उत्तराखंढ के प्रशासनिक अधिकारियों से मिले और इस फील्ड में अपने तजुर्बे के बारे में बताया। उनके बार-बार कहने पर अधिकारियों ने उनके बारे में पड़ताल की तो जानकारी मिली कि राजपूत हरियाणा के कुरुक्षेत्र व अंबाला के बीच एक गाँव में बोरवेल में गिरे बच्चे प्रिंस के बचाव अभियान में शामिल थे।
दरअसल हरियाणा सरकार की तरफ से तब राजपूत को उनके काम के लिए सम्मान दिया गया था। इन सब पर गौर करते हुए प्रशासन ने उन्हें अभियान में शामिल करने का फैसला लिया और ये फैसला सही साबित हुआ।