लखनऊ। एनडीए में रालोद के शामिल होने की अटकलों के बीच नजरें अब रालोद के अगले कदम पर टिक गई है। रालोद नेता जहां अटकलों को सिरे से खारिज कर रहे हैं, वहीं भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने लखनऊ में कहा कि राजनीति में किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। सपा नेता दावा कर रहे हैं कि रालोद के साथ गठबंधन कायम है। फिर भी यदि सियासी समीकरण बदलते हैं तो सियासी गुणा-भाग लगाने वालों का मानना है कि इससे वेस्ट यूपी में काफी उलटफेर होगा। भाजपा और रालोद दोनों को फायदा हो सकता है।
भाजपा को और मजबूती मिलेगी
मेरठ, सहारनपुर, मुरादाबाद मंडल की 14 सीटें हैं और 2019 के चुनाव में भाजपा ने 14 में से सात सीटें ही जीती थी। रामपुर की सीट बाद में उपचुनाव में भाजपा के पास आ गई। अन्य पर सपा-बसपा गठबंधन की जीत हुई थी। रालोद का सफाया हो गया है। ऐसे में माना जा रहा है कि अब यदि भाजपा और रालोद की दोस्ती पक्की हो गई तो दोनों पार्टियों को लाभ होगा। रालोद का लोकसभा में खाता खुल जाएगा। भाजपा को और मजबूती मिलेगी।
रालोद के लिए अच्छा नहीं रहा 2014 और 2019 का अनुभव
पश्चिमी यूपी में 2014 में रालोद आठ सीटों पर चुनाव लड़कर भी एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर पाई थी। इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में 14 सीटों में भाजपा ने सात और सपा-बसपा ने तीन-चार सीटों पर जीत हासिल की थी। 2019 में सपा और बसपा के साथ गठबंधन में तीन सीटों पर चुनाव लड़ने वाली रालोद को एक भी सीट पर जीत नहीं मिल पाई थी। इस तरह विधानसभा में तो सपा गठबंधन में रालोद को लाभ हुआ, लेकिन लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन में रालोद को नुकसान हुआ है। अब ऐसी स्थिति में भाजपा-रालोद की बात बन जाती है तो पश्चिमी यूपी की राजनीति में भारी उलट-फेर होना तय है।
भाजपा: मेरठ, मुजफ्फरनगर, बागपत, कैराना, बुलंदशहर, गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर
बसपा: बिजनौर, नगीना, सहारनपुर, अमरोहा
सपा: मुरादाबाद, संभल, रामपुर (अब भाजपा के पास)