बिहार में सरकार नीतीश कुमार की है लेकिन नेताओं और पत्रकारों के बीच ज्यादातर चर्चा लालू यादव के परिवार की है. लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव के तलाक मांगने की खबर अब पुरानी हो चुकी है. नई खबर उड़ी है कि उनका बड़ा बेटा और बड़ी बिटिया दोनों बागी बन सकते हैं. सुनी-सुनाई है कि तेज़ प्रताप यादव और मीसा भारती को अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव का नेतृत्व पसंद नहीं आ रहा है. और लालू यादव के परिवार में सुलह की गुंजाइश खत्म होती जा रही है.
बिहार विधानसभा में बड़े भाई और छोटे भाई का जिस अंदाज़ में मिलाप हुआ उसने छिपी छिपाई बातों पर से परदा उठा दिया. तलाक की अर्जी देने के बाद तेज प्रताप यादव परिवार से दूर मथुरा और वृंदावन में प्रभु भक्ति करने पहुंच गये थे. इसके बाद जब वे पटना लौटे तो छोटे भाई से बात करने से बचते रहे. विधानसभा में भी दोनों के बीच दूरियां दिखी. सुनी-सुनाई है कि तेज प्रताप यादव अब अपने तरीके से जीवन जीना चाहते हैं और छोटे भाई तेजस्वी यादव के साये में रहना उन्हें पसंद नहीं. मां के लाख समझाने, पिता से अस्पताल में मिलने और वृंदावन के एक बाबा की मध्यस्थता के बाद भी वे अपना फैसला नहीं बदलना चाहते. राष्ट्रीय जनता दल की खबर रखने वाले एक सूत्र बताते हैं कि परिवार में अकेले पड़े तेज प्रताप को बड़ी बहन मीसा भारती का समर्थन है.
लालू परिवार में राबड़ी देवी के बाद सबसे पहले सियासत में बड़ी बेटी मीसा भारती ही कूदी थी. पहले ही चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. फिर वे राज्यसभा के रास्ते दिल्ली पहुंचीं. लालू यादव ने जब अपने दोनों बेटों को विधानसभा चुनाव लड़ाया उस वक्त परिवार में यह समझौता हुआ था कि तेजस्वी और तेज प्रताप यादव प्रदेश की सियासत करेंगे और मीसा भारती दिल्ली की. यह कुछ वैसा ही था जैसे तमिलनाडु में भाई स्टालिन राज्य की राजनीति संभालते हैं और बहन कनिमोझी दिल्ली और चेन्नई के बीच सूत्र का काम करती हैं.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मीसा भारती के एक करीबी एक नेता बताते हैं कि लालू के जेल जाने के बाद मीसा अपनी पार्टी और परिवार में लगातार कमजोर पड़ती जा रही हैं. जिस तरह से उनकी जायदाद पर छापे पड़े, उन्हें और उनके पति को घंटों पूछताछ के लिए बुलाया गया, उनके छोटे भाई ने कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं किया. तेजस्वी यादव से बड़ी बहन की शिकायत है कि अब तो दिल्ली की रैलियों में भी उन्हें तवज्जो नहीं दी जाती है. जंतर-मंतर तक के धरने में तेजस्वी पहुंच जाते हैं और राहुल गांधी से भी सीधे तेजस्वी की ही बातचीत होती है.
परिवार में परेशानी तब ज्यादा बढ़ी जब तेजस्वी यादव ने पटना और दिल्ली में अपनी अलग टीम बना ली. बहुत कम लोग जानते हैं कि तेजस्वी की नई टीम लालू यादव की टीम से एकदम अलग है और अलग तरीके से सोचती और काम करती है. जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के कई छात्र उनके सलाहकार हैं, दिल्ली के कई वरिष्ठ पत्रकारों से तेजस्वी राय लेते हैं. ‘हमें डाटा नहीं, आटा चाहिए’ जैसे जुमले भी तेजस्वी के लिए जेएनयू के ही एक सलाहकार ने गढ़े थे. राजद के अंदर काम करने वाले बताते हैं कि दिल्ली में तेजस्वी यादव का मीडिया मैनेजमेंट राज्यसभा सांसद मनोज झा देखते हैं. जेएनयू में उनकी पार्टी ने इस बार चुनाव तक लड़ा और वहां होने वाली बहस में इस पार्टी के उम्मीदवारों के तर्क सुनने वाले थे.
राजद के एक बड़े नेता बताते हैं कि तेजस्वी अब लालू यादव स्टाइल सियासत से आगे बढ़कर नई सोच वाले लोगों की टीम बना चुके हैं. तेज प्रताप यादव का घर न आना, मीसा भारती का नाराज़ हो जाना, कभी-कभी मां राबड़ी का गुस्सा हो जाना, इस नई टीम को मिली ताकत की वजह से ही है. इसीलिए लालू के पुराने वफादार यादव नेताओं की मंडली अब मीसा भारती और तेज प्रताप यादव के इर्द-गिर्द जुटने लगी है.
पटना में हुए एक कार्यक्रम में बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी ने एक मार्के वाली बात कही थी, यह बात ही लालू परिवार के बारे में भाजपा की रणनीति का सूत्र है. उन्होंने कहा, ‘लालू परिवार के साथ बिहार का यादव मतदाता है. इस वोटबैंक को ये फर्क नहीं पड़ता कि नेता तेजस्वी यादव हैं या फिर मीसा भारती या फिर तेज प्रताप. लालू यादव के परिवार से जो आगे आएगा उसे यादव वोटर अपना नेता मानेगा.’
इससे साफ है कि भाजपा यह मानती है कि आने वाले चुनाव में ज्यादातर यादव वोट एनडीए को नहीं मिलेंगे. मुसलमान वोट मिलने की उम्मीद भी बेहद कम है. बिहार एक ऐसा राज्य है जहां यादव और मुसलमान वोट जोड़ दें तो यह आंकड़ा 25 से 30 फीसदी के करीब पहुंच जाता है. यही अंकगणित लालू परिवार के विरोधियों को परेशान कर रहा है. भाजपा के एक नेता बताते हैं कि अगर लालू परिवार में ही दो गुट बन जाएं, तो चुनाव आसान हो सकता है. वे उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश में यादव परिवार में मचे घमासान की तरफ देखते हैं. यहां भतीजे अखिलेश यादव के खिलाफ चाचा शिवपाल यादव ने बगावत कर दी है. शिवपाल अगले चुनाव में अपनी नई पार्टी के उम्मीदवार तक उतारने वाले हैं. बिहार में भी अगर कुछ ऐसा हो गया तो आश्चर्य नहीं होगा, बस फर्क इतना है कि यहां चाचा-भतीजा नहीं, भाई-बहन आपस में लड़ सकते हैं.