हरियाणा में जो बहुत पहले होना था वो आज हो गया. बीजेपी और जेजेपी का साथ छूट गया. सीधी सी बात है कि अगर बीजेपी आज बिना दुष्यंत चौटाला के अपना बहुमत साबित कर सकती है तो पहले क्यों नहीं की? निर्दलीय विधायक तो पहले भी बीजेपी के साथ थे. दूसरी बात इसी बहाने बीजेपी मनोहर लाल खट्टर से छुटकारा भी पा ली है. सोमवार को द्वारका एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के मौके पर जब पीएम नरेंद्र मोदी खट्टर की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे थे तभी बहुत से राजनीतिक विश्लेषकों को ऐसा लग गया था कि कुछ तो अलग होने वाला है. पीएम मोदी यूं ही नहीं इस तरह सार्वजनिक तारीफ करते हैं. मंगलवार की सुबह होते ही खबर आ गई कि मनोहर लाल के जाने की तैयारी हो गई है. सवाल यह उठता है कि ऐन चुनाव के मौके पर सीएम या अपना साथी बदलकर क्या बीजेपी हरियाणा में क्या हासिल कर लेगी? हालांकि नायब सैनी के नाम की घोषणा होते ही स्पष्ट हो गया कि बीजेपी की आगामी चुनावों में क्या रणनीति होने वाली है.
1-जेजेपी के साथ गठबंधन तोड़ना क्यों जरूरी हो गया था
2-बीजेपी कई सालों से हरियाणा में एंटी जाट वोटों की रणनीति पर काम कर रही है
हरियाणा की राजनीति में जाटों का वर्चस्व रहा है. जबसे हरियाणा में बीजेपी की सरकार बनी है सीएम के रूप में मनोहर लाल खट्टर विराजमान रहे हैं. खट्टर पंजाबी समुदाय से आते हैं. जाटों को ये बात खटकती रही है. 2017 में जाट आरक्षण आंदोलन इसका ही परिणाम रहा. इस आंदोलन में पंजाबियों और सैनियों को जान माल का बहुत नुकसान हुआ. जाट जितना इन समुदायों के खिलाफ आक्रामक हुए बीजेपी का एंटी जाट वोट उतना ही मजबूत होता गया. प्रशासनिक रूप से मनोहर लाल खट्टर उनते सक्षम साबित न होते हुए भी अपनी इमानदारी और पंजाबी समुदाय के होने के चलते इतना लंबे कार्यकाल तक सीएम बने रहने में सक्षम साबित हुए.
यही कारण रहा है कि बीजेपी ने प्रदेश में मुख्यमंत्री तो पंजाबी को बनाया ही प्रदेश अध्यक्ष पद से जाट ओमप्रकाश धनखड़ को हटाकर नायब सैनी को बना दिया . नायब सैनी पिछड़ी जाति से आते हैं. मंगलवार सुबह से ही नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाने की चर्चा चल रही थी जो दोपहर होते होते सही साबित हुई. कहा जा रहा है कि नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी में राज्य में पंजाबी और बैकवर्ड वोट बैंक बनाना चाहती है. इसका दूसरा लाभ उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी लिया जाएगा.
3-जाटों की नाराजगी डिप्टी सीएम बनाकर दूर होगी?
चाहे जाट आरक्षण हो या महिला पहलवानों का मुद्दा हो हरियाणा के जाटों के मन में बीजेपी को लेकर बहुत नाराजगी है. ओमप्रकाश धनखड़ को हरियाणा बीजेपी के अध्यक्ष पद से हटाए जाने के बाद से ये नाराजगी और बढ़ चुकी है. धनखड़ उन लोगों में शामिल रहे हैं जिन्होंने बीजेपी को हरियाणा में मजबूत करने के लिए सबसे अधिक मेहनत की है. धनखड़ ही नहीं, कैप्टन अभिमन्यू, चौधरी बीरेंद्र सिंह आदि के साथ भी पार्टी ने न्याय नहीं किया. हरियाणा के कद्दावर जाट नेता और सर छोटू राम के नाती चौधरी वीरेंद्र सिंह और उनके पुत्र पूर्व आइएएस अधिकारी चौधरी बिजेंद्र सिंह को पहले मंत्री बनाया गया फिर किनारे लगा दिया गया. फिलहाल कुछ दिनों पहले ही चौधरी बिजेंद्र सिंह ने कांग्रेस ज्वाइन कर ली है.
हरियाणा की आबादी में जाटों की संख्या लगभग 23 प्रतिशत है और डॉमिनेंट कास्ट होने के चलते जाट राजनीतिक रूप से भी प्रभावी रहे हैं. राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 40 सीटों पर जाटों का सीधा प्रभाव है. 2014 के विधानसभा चुनाव मेंजाटों ने भाजपा को एकतरफा वोट दिया.लेकिन 2019 विधानसभा चुनावों में मामला उल्टा पड़ गया.जाटों का वोट कांग्रेस ( 30 सीट), जेजेपी (10 सीट) और आईएनएलडी (1) को गया.भाजपा के दिग्गज जाट नेता कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और ओम प्रकाश धनखड़, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता और तत्कालीन राज्य भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला सभी चुनाव हार गए. राज्य में ब्राह्मण, पंजाबी और बनिया समाज का वोट 29 से 30 प्रतिशत के करीब है.इनका वोट सीधे बीजेपी को ही जाता है.अगर पिछड़ा वर्ग के करीब 24 से 25 प्रतिशत वोट भी बीजेपी के साथ आ जाते हैं तो बीजेपी को प्रदेश में हराना नामुमकिन हो जाता है.