नीलेश द्विवेदी
पिछले साल अप्रैल से जून के बीच मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में हुए किसान आंदोलन पूरे देश में सुर्ख़ियां बने थे. आंदोलनाें में दो मांगें प्रमुख थीं. पहली – किसानों को उनकी फ़सलों के सही दाम मिल जाएं. दूसरी- उनके कर्ज़ माफ़ कर दिए जाएं. तब महाराष्ट्र के साथ-साथ मध्य प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ही सरकार थी. केंद्र की सत्ता में तो वह है ही. सो ज़ाहिर तौर पर दबाव उसी पर ज़्यादा था. इस दबाव में महाराष्ट्र की देवेंद्र फडणवीस सरकार तो झुक गई. उसने जून-2017 में ही घोषणा कर दी कि राज्य के किसानों का कर्ज़ माफ़ कर दिया जाएगा. लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने ऐसा नहीं किया. वह किसानों के लिए भावांतर योजना लाई. उन्हें उनकी फ़सल की कीमत पर बोनस दिया. लेकिन ये कदम कोई खास कारगर साबित नहीं हुए और यह एक बड़ी वजह रही कि मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में 15 साल बाद भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा.
वहीं दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने इसके ठीक उलट काम किया. या यूं कहें कि उसने नब्ज़ पकड़ ली. मध्य प्रदेश के साथ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी किसानों का कर्ज़ और बिजली बिल माफ़ करने का उसने चुनावी दांव चला, जो माना जा सकता है कि काम कर गया और आज तीनों राज्यों में कांग्रेस की सरकारें बन चुकी हैं. यही नहीं कांग्रेस ने अपनी इन सरकारों के जरिए छह महीने बाद होने वाले लाेक सभा चुनावों के मद्देनज़र इसी दांव को अगले चरण में ले जाने की क़वायद भी शुरू कर दी है. इसके तहत मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में नए मुख्यमंत्रियों क्रमश: कमलनाथ और भूपेश बघेल ने पहला फ़ैसला ही किसानों के कर्ज़ माफ़ करने का किया. वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को यह काम कर दिया. सो, अब ज़ाहिर तौर पर भाजपा के सामने कांग्रेस की बिछाई इस नई चुनावी चाैसर पर उससे सीधे मुकाबले की चुनौती आन पड़ी है.
हालांकि भाजपा ने अब तक सीधे तौर पर ये माना नहीं है कि अगले लोक सभा चुनाव में सीधे कांग्रेस ही उसके मुकाबले में है. अलबत्ता उसके कुछ कदमों के बाबत आई हालिया ख़बरें ज़रूर ये संकेत दे रही हैं कि वह कांग्रेस और उसके चुनावी दांव को अब गंभीरता से ले रही है. बल्कि कई जगह तो उसकी नकल करती ही दिख रही है. इसके कुछ उदाहरण देखिए..
असम में किसानों का कर्ज़ माफ़, गुजरात में बिजली का बिल और ओडिशा में वादा
असम में भाजपा की सरकार है. केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार में पहले मंत्री रहे सर्बानंद सोनोवाल इस वक़्त वहां के मुख्यमंत्री हैं. और उनकी सरकार के बारे में बुधवार को ख़बर आई है कि उसने राज्य के किसानों का 25,000 रुपए तक का कर्ज़ माफ़ कर दिया है. राज्य के उद्योग मंत्री और सरकार के प्रवक्ता चंद्र मोहन पटवारी ने मीडिया को इसकी जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि मंगलवार को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में इस फ़ैसले पर मुहर लगी है. इसका लाभ राज्य के लगभग आठ लाख कर्ज़दार किसानों को होगा. इस कर्ज़ माफ़ी की वज़ह से राज्य के सरकारी ख़ज़ाने पर 600 करोड़ रुपए का भार आएगा. इसके अलावा प्रदेश के सभी 19 लाख किसानों के लिए अगले वित्तीय वर्ष से ब्याजमुक्त कर्ज़ देने की योजना भी शुरू की जा रही है. साथ ही किसानों के लिए कुछ और योजनाएं भी मंज़ूर की गई हैं.
गुजरात में तो भाजपा की सरकार को दो दशक से ज़्यादा हो गए हैं. वहां की विजय रूपाणी सरकार ने किसानों का कर्ज़ माफ़ करने का फ़ैसला तो अब तक नहीं किया है. लेकिन बिजली के बकाया बिलों को ज़रूर माफ़ कर दिया है. प्रदेश के ऊर्जा मंत्री सौरभ पटेल ने मीडिया को यह जानकारी दी है. उन्होंने बताया कि सरकार के इस फ़ैसले से प्रदेश के 6.22 लाख लोगों को फ़ायदा हाेगा, जिनके बिजली कनेक्शन बिल न चुकाने की वज़ह से काट दिए गए थे. इन कनेक्शनों में कृषि, व्यावसायिक और घरेलू सभी शामिल हैं. इस फ़ैसले से सबसे अधिक फ़ायदा ग्रामीण आबादी को होगा. हालांकि सरकार को 650 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ेगा.
इसी तरह की ख़बर ओडिशा से भी आई है. यहां भी 20 साल से ज़्यादा वक़्त से एक ही सरकार है, बीजू जनता दल (बीजेडी) की. पार्टी प्रमुख नवीन पटनायक लगातार मुख्यमंत्री हैं, जो कभी भाजपा के सहयोगी हुआ करते थे. अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार में वे मंत्री भी रहे हैं. लेकिन अगले साल होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में उन्हें भाजपा से ही सबसे तगड़ी चुनौती मिलने का अनुमान है. भाजपा को ख़ुद भी अपनी संभावनाएं दिख रही हैं. इसलिए इन संभावनाओं को मज़बूत करने के लिए उसने यहां किसानों के कर्ज़ माफ़ करने का वादा अभी से करना शुरू कर दिया है. पार्टी की राज्य इकाई के अध्यक्ष बसंत पांडा ने घोषणा की है कि अगर पार्टी सत्ता में आई तो प्रदेश के किसानों का कर्ज़ माफ़ किया जाएगा. बताया जाता है कि ओडिशा से ही ताल्लुक़ रखने वाले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी ऐसा वादा कर चुके हैं.
मोदी सरकार भी किसानों का कर्ज़ माफ़ करने की तैयारी में
इतना ही नहीं, ख़बरें तो यहां तक हैं कि कर्ज़ माफ़ी जैसे क़दमाें से अब तक परहेज़ करने वाली केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार भी जल्द ही इसी तरह का क़दम उठा सकती है. सूत्रों के हवाले से द इकॉनॉमिक टाइम्स ने बताया है कि मोदी सरकार देश के लगभग 26.30 करोड़ किसानों का कर्ज़ माफ़ करने की योजना पर काम कर रही है. इसके तहत किसानों का क़रीब 3,971 अरब रुपए का कर्ज़ माफ़ किया जा सकता है. इसके साथ ही किसानों को उनकी फ़सलों का उचित दाम मिले यह सुनिश्चित करने के लिए गारंटीड मूल्य का काेई बंदोबस्त भी किया जा सकता है, ऐसा कृषि क्षेत्र के जानकारों और सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है.
अगले साल एक फरवरी को नरेंद्र मोदी की मौज़ूदा सरकार अंतिम बजट पेश करने वाली है. यह अंतरिम बजट होगा और पूरी तरह चुनावी भी. इसके बारे में भी आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है कि इसमें किसानों और कृषि क्षेत्र से जुड़ी लोकलुभावन योजनाओं पर ही ज़्यादा जोर हो सकता है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर इसकी पुष्टि करते हैं. उनके मुताबिक, ‘बीते (पांच राज्यों के विधानसभा) और आने वाले (लोक सभा के) चुनावों का असर बजट पर निश्चित रूप से दिखेगा. इस बार पूरा ज़ोर कृषि व ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर हो सकता है.’ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी एक साक्षात्कार में इस बात को स्वीकार कर चुके हैं.
फ़िर क्या ये माना जा सकता है कि अगला लोक सभा चुनाव कांग्रेस के तय एजेंडे पर होगा?
इस सवाल के ज़वाब में लोगों की राय अलग-अलग हो सकती है. चुनाव में अभी समय है और मुद्दों की हवा बदलते ज़्यादा देर नहीं लगती. फिर भी इस वक़्त तो यही लग रहा है कि अगले चुनाव की दशा-दिशा कांग्रेस तय कर रही है. जिस तरह से एक-एक के बाद असम और गुजरात की भाजपा सरकारों ने क़दम उठाए और नरेंद्र मोदी सरकार की बजट तैयारियों आदि की ख़बरें आ रही हैं, उससे यह बात साबित होती है. योगेंद्र यादव जैसे सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता इस बात को थोड़ा और बेहतर तरीके से बताते हैं.
यादव के मुताबिक, ‘देश के किसान तो हमेशा से कर्ज़ और फ़सलों के उचित दाम न मिलने जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं. लेकिन पहली बार ऐसा लग रहा है कि कोई लोक सभा चुनाव सिर्फ़ इसी समस्या के इर्द-ग़िर्द लड़ा जाने वाला है. हाल ही में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की पराजय और किसान संगठनों के एकजुट होने से यह स्थिति बनती दिख रही है.’ यहां बता दें कि यादव की पहल पर देश के लगभग 200 किसान संगठन ‘अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति’ (एआईकेएससीसी) के बैनर तले एकजुट हुए हैं.
लिहाज़ा इसी संदर्भ में एक पुराना तथ्य याद रखा जा सकता है. साल 2008 में केंद्र की तत्कालीन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार ने देश के किसानों का लगभग 720 अरब रुपए का कर्ज़ माफ़ करने का ऐलान किया था. कर्ज़ माफ़ी के उस एक क़दम ने 2009 में लगातार दूसरी बार कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी, ऐसा जानकार मानते हैं. ठीक वैसे ही जैसे इसने कांग्रेस की मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता में वापसी में भूमिका निभाई है.