पूरी दुनिया अब भारतीय नौसेना की नज़र में, केवल हिंद महासागर नहीं हर समंदर पर निगरानी

नई दिल्ली। भारतीय नौसेना ने एक ताकतवर अंतर्राष्ट्रीय नौसेना की तरह काम करना शुरू कर दिया है. शनिवार को गुरुग्राम में इन्फॉर्मेशन फ्यूज़न सेंटर- इंडियन ओसियन रीज़न ने काम करना शुरू कर दिया. इसके साथ ही हिंद महासागर के साथ-साथ लगभग पूरी दुनिया के समंदरों में चल रहे हर जहाज़ के बारे में हर जानकारी रियल टाइम में भारतीय नौसेना को मिलती रहेगी. इसके लिए अब तक 43 देशों के साथ समझौता हो चुका है.

मुंबई हमले के बाद ही ये तय हो गया कि बिना समुद्र की निगरानी के सुरक्षित रह पाना नामुमकिन है. भारत तीन तरफ़ से समंदर से घिरा है, जिसे इंडियन ओशियन रीजन कहते हैं. हिंद महासागर दुनिया का सबसे व्यस्त जलमार्ग है. दुनिया भर का एक तिहाई सामान, आधा कंटेनर में लगा सामान और दो-तिहाई तेल इसी समंदर से होकर जाता है. वहीं यहां समुद्री डकैतों, हथियार और नशे के तस्कर और आतंकवादी की मौजूदगी भी रहती है. यानि आर्थिक उन्नति और सुरक्षा दोनों के लिए ही हिंद महासागर क्षेत्र को सुरक्षित रखना ज़रूरी है.

2012 में इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट एंड एनालिसिस सेंटर यानि आईमेक की नींव रखी गई जिसने 2014 में काम करना शुरू कर दिया. भारत की 7500 किमी लंबी समुद्री सीमा पर कुल 51 रडार स्टेशन लगाए गए जिनके ज़रिए हिंद महासागर में आने वाले हर जहाज़ के बारे में हर सूचना, जैसे जहाज़ में लदा सामान, जहाज़ का नाम और देश का नाम, कहां से आ रहा है और कहां जाना है, जहाज़ में सवार क्रू के बारे में पूरी जानकारी रियल टाइम में गुरुग्राम के आईमेक तक आती रहती है. 51 स्टेशन से कैमरों के ज़रिए भी फीड लगातार सेंटर तक आती है.

दरअसल, हर जहाज़ को अंतर्राष्ट्रीय नियमों के तहत खुद को रजि़स्टर करना होता है और उसके आटोमैटिक आईडेंटिफिकेशन सिस्टम के ज़रिए उसकी हर गतिविधि पर नज़र रखी जाती है. अगर किसी जहाज़ के पास ये सिस्टम नहीं है या वह किसी और के रज़िस्टर्ड नंबर का इस्तेमाल कर रहा है तो उसका फौरन पता चल जाता है. इससे पूरे हिंद महासागर पर नज़र रखी जाती है.

शनिवार को भारतीय नौसेना ने दुनिया के 43 देशों के स्टेशनों को भी इस सेंटर में शामिल कर लिया. यानि अब वे देश भी भारतीय नौसेना की जानकारियों का फ़ायदा उठा पाएंगे. बदले में भारतीय नौसेना को पूरी दुनिया के हर समंदर में मौजूद किसी भी जहाज़ की जानकारी पा लेना संभव होगा. फ़िलहाल इस सेंटर में दूसरे देशों से टेलीफोन या इंटरनेट के ज़रिए संपर्क होगा लेकिन भविष्य में इन देशों के अधिकारी भी इस सेंटर में बैठ सकेंगे और समंदर पर नज़र रखने में सहयोग करेंगे.

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