कल तक कांग्रेस जिस कल्लूरी को ‘अपराधी’ बताती थी, वो आज उन्हें महत्वपूर्ण पद से क्यों नवाज़ रही है?

नई दिल्ली। क्या सत्ता के चरित्र में ही कुछ ऐसा है कि वह आपको अधर्म की ओर ले जाती है? महाभारत का पात्र दुर्योधन कहता है कि जानता हूं कि धर्म क्या है लेकिन उस ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं और यह भी जानता हूं कि अधर्म क्या है लेकिन उससे मेरी निवृत्ति नहीं.

लेकिन छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री यह नहीं कह सकते कि इसके लिए वे नहीं उनकी सत्ता जिम्मेदार है कि कल तक जिसे वे हत्या, बलात्कार और अन्य प्रकार के उत्पीड़न का अपराधी ठहरा रहे थे आज उसी व्यक्ति को वे एक महत्वपूर्ण पद सौंप रहे हैं!

सिर्फ छत्तीसगढ़ नहीं, भारत नहीं, भारत के बाहर भी उसके शुभचिंतक हतप्रभ और सन्न रह गए जब उन्होंने सुना कि छत्तीसगढ़ की नई सरकार ने कुख्यात पुलिस अधिकारी शिवराम कल्लूरी को आर्थिक अपराध विभाग और भ्रष्टाचार विरोधी विभाग में पुलिस महानिरीक्षक के पद पर नियुक्त किया है.

राज्य के पुलिस प्रमुख ने इसे नियमित तबादला माना है. कल्लूरी कोई साधारण पुलिस अधिकारी नहीं हैं. आज के मुख्यमंत्री और कल के विपक्ष के नेता भूपेश बघेल ने अक्टूबर, 2016 में कल्लूरी को बर्खास्त करने की ही नहीं, गिरफ्तार करने की मांग तक की थी. उस समय उन्होंने यह कार्टून जारी किया था.

Kalluri Cartoon

छत्तीसगढ़ कांग्रेस द्वारा जारी किया गया कार्टून

इसी महीने में उच्चतम न्यायालय में सीबीआई ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि ‘मार्च 2011 में सुकमा जिले के ताड़मेटला, मोरपल्ली और तिम्मापुर में आदिवासियों के 252 घर जला दिये गये थे और यह काम विशेष पुलिस अधिकारियों ने किया था. इन गांवों में तीन आदिवासियों की हत्या हुई थी और महिलाओं के साथ बलात्कार भी किया गया था.’

कल्लूरी उस वक्त दंतेवाड़ा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक थे. उनपर कथित माओवादी रमेश नगेशिया की हत्या का आरोप है और बाद में उनकी पत्नी लेधा के साथ बलात्कार का भी.

सीबीआई ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि जब उसकी टीम जांच के लिए ताड़मेटला जा रही थी तो उस पर पुलिस ने ही हमला किया था. उस समय कल्लूरी ही वहां के पुलिस प्रमुख थे.

कल्लूरी ने यह साफ़ तौर पर कह दिया था कि सिर्फ राष्ट्रवादी पत्रकार ही उनके इलाके में जा सकते हैं. मुझे खुद उस दौर में एक वरिष्ठ पत्रकार से हुई बातचीत की याद है जिन्होंने कल्लूरी और उनके मातहत अधिकारी के द्वारा उन्हें लगभग साफ़ धमकी की चर्चा की थी.

कल्लूरी के नेतृत्व में ही श्यामनाथ बघेल नाम के एक आदिवासी की हत्या के मामले में समाजशास्त्री नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी और सीपीएम के संजय पराते के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. वह मामला अभी भी लंबित है.

सभी जानते हैं कि कल्लूरी की पुलिस ने बस्तर में पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का काम करना असंभव कर दिया था. स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले की भी याद सबको है, जो पुलिस की शह पर किया गया था.

सोनी सोरी पर हमले के बाद कल्लूरी ने उन्हें एक बाजारू औरत कहते हुए इस मामले पर कोई बात करने से ‘छतीसगढ़’ अखबार के संवाददाता को मना कर दिया था. सोनी सोरी ने कल्लूरी पर आरोप लगाया था कि उन्हीं के इशारे पर उन पर हमला हुआ था.

आज के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार रुचिर गर्ग ने उसी दौर में एक संपादकीय में इसे पुलिस राज बताया था. कल्लूरी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से अपनी नजदीकी को छिपाया भी नहीं.

शुभ्रांशु चौधरी ने ‘सीजी नेट स्वर’ को बस्तर ले जाने में कठिनाई का जिक्र करते हुए एक पुलिस अधिकारी से अपनी बातचीत का हवाला दिया, जिसने उन्हें कहा कि कल्लूरी से उन्हें परेशानी होगी और वे उन्हें काम नहीं करने देंगे. एक दूसरे पत्रकार ने उन्हें आरएसएस और भाजपा का सिपाही बताया.

यह सब कुछ इतना बढ़ गया कि तत्कालीन भाजपा सरकार ने भी खुद को कल्लूरी के चलते बदनामी से बचाने के लिए उन्हें लंबी छुट्टी पर भेजा और बाद में एक कम महत्वपूर्ण महकमे में पदस्थापित कर दिया.

New Delhi: Congress leader Bhupesh Baghel, one of the front runners for Chhattisgarh Chief Minister's post, leaves from the residence of party President Rahul Gandhi, in New Delhi, Saturday, Dec 15, 2018. (PTI Photo/Arun Sharma) (PTI12_15_2018_000027B)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (फोटो: पीटीआई)

अब वे ही भूपेश बघेल वापस कल्लूरी को प्रकाश में ले आए हैं जो उन्हें जेल भेजना चाहते थे. वे कह सकते हैं कि तब वे विपक्ष में थे और उसका कर्तव्य निभा रहे थे और अब उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे यह काम करवा रही है. लेकिन इस ‘नियमित तबादले’ का अर्थ असाधारण है और वह यह कि विवेक, विचार और सत्ता में कांग्रेस के बीच कोई रिश्ता नहीं दिखता.

छत्तीसगढ़ के जनादेश को भी कई लोग सिर्फ आर्थिक बदहाली के कारण पैदा हुए रोष का नतीजा मानना चाहते हैं. इसका कोई वैचारिक आशय नहीं है और इसमें किसी नए जीवन मूल्य की कोई भूमिका नहीं है. लेकिन लोग दो जून की रोटी के साथ एक भला जीवन भी चाहते हैं जो अन्याय और दमन से मुक्त हो.

उस व्यक्ति को जो जनमानस में इन दोनों का प्रतीक है, वापस सम्मानित पद देकर भूपेश बघेल ने उन लोगों को निराश किया है जो मान रहे थे कि शायद नए नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की सरकार मानवाधिकार से अपनी प्रतिबद्धता सिद्ध करेगी.

पहला निर्णय इसके ठीक खिलाफ है. इसका अर्थ यही है कि मानवाधिकार को छतीसगढ़ में जगह बनाने के लिए अभी लंबा संघर्ष करना बाकी है.

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाते हैं.)

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