‘इंडिया वाच’ न्यूज़ चैनल पर खास और खोजी खबरों पर आधारित विशेष कार्यक्रम शुरू हुआ। कार्यक्रम का नाम रखा गया है… ‘डंके की चोट पर’। इस विशेष कार्यक्रम में ऐसी खबरें ली जाएंगी जो हमारे-आपके सरोकार से जुड़ी हों, ऐसी खबरें जो लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए जरूरी हों, ऐसी खबरें जिसे दबाने के लिए भारी दबाव हो और ऐसी खबरें जो दबाव और लुभाव में दबा दी जाती हों। ऐसी ही खबरों को हम ‘इंडिया वाच’ न्यूज़ चैनल पर जिंदा करेंगे, उसका फॉलोअप करेंगे, उस खबर का पीछा करेंगे। हम आपसे भी आग्रह करेंगे कि आप ऐसी किसी स्थिति से गुजर रहे हों जो विशेष खबर बनती हो, या आप किसी गंभीर खबर की जानकारी रखते हों, या किसी गंभीर मसले में आपकी कोई नहीं सुन रहा हो, तो हमारे पास आएं। हमें [email protected] पर सूचित करें। हम आपकी समस्या को मजबूत आवाज देंगे, हम आपकी समस्याओं को अपनी समस्या मानेंगे और व्यवस्था तंत्र से जवाब मांगेंगे, डंके की चोट पर…
हमने कार्यक्रम की शुरुआत की मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से… कमलनाथ ने उत्तर प्रदेश के लोगों के आत्मसम्मान पर प्रहार किया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करते ही कमलनाथ ने उत्तर प्रदेश पर हमला बोला कि यूपी के लोग एमपी का रोजगार खा रहे हैं। मध्यप्रदेश का जो नेता उत्तर प्रदेश का हजारों करोड़ रुपया सिलसिलेवार तरीके से डकार रहा है, वह कहता है कि यूपी के लोग एमपी का रोजगार खा रहे हैं। चमकदार शीशे के घर में रहने वाले कमलनाथ ने यूपी के नौजवानों पर पत्थर फेंका है। हमने उस पत्थर का जवाब दिया है। सरकार ऊंचा सुनती है तो सुना करे। आम लोग सुनें… नौजवान सुनें… फिर इतना दबाव बने कि यूपी सरकार का नैतिक बोध जगे और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ यूपी के बेरोजगारों के अपमान का हर्जाना भरने के लिए विवश हो जाएं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके कुछ खास रिश्तेदारों की वजह से उत्तर प्रदेश को हर साल चार हजार करोड़ रुपए का सिलसिलेवार नुकसान हो रहा है। यूपी की पिछली सरकार, यानी अखिलेश यादव की सरकार ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और एमपी के मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ को उपकृत करने के लिए उत्तर प्रदेश के सारे हित ताक पर रख दिए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की दरियादिली की वजह से उत्तर प्रदेश को तकरीबन चार हजार करोड़ का सालाना झटका 25 साल तक लगता रहेगा। अखिलेश यादव और कमलनाथ की साठगांठ का यह महज एक पहलू है। इसने उत्तर प्रदेश को कई तरफ से नुकसान पहुंचाया है। इस नुकसान का सिलसिला लगातार जारी है… योगी सरकार भी इस क्रमिक नुकसान की तरफ आंखें मूंदे हुई है।
कांग्रेस नेता कमलनाथ, कमलनाथ की बहन नीता पुरी, बहनोई दीपक पुरी और भांजे रातुल पुरी के आगे अखिलेश यादव की सरकार बिछ गई थी। यह बिछना-बिछौना इतना प्रगाढ़ हुआ कि यूपी को लूटने का दरवाजा खोल दिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह पहले एक कंपनी यूपी में घुसी। फिर कई कंपनियों ने यहां पैर पसार लिए। यहां तक कि नाम बदल-बदल कर ‘कमलनाथों’ की कंपनियां प्रदेश के खजाने से खेल रही हैं। …और कमलनाथ समेत उनके रिश्तेदार भारी मुनाफा कमा रहे हैं। इस कमाई का उच्छिष्ट सपाई सत्ता के नेता और नौकरशाह पहले ही चाट चुके हैं।
तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कमलनाथ से प्रभावित होने के बाद यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बिजली खरीदने के लिए उस कम्पनी के साथ 25 सालाना करार किया जिसने निविदा में बिजली की ऊंची दर कोट की थी। निविदा में शामिल सात कम्पनियों में ‘मोज़र बेयर’ छठे नम्बर पर थी। लेकिन प्रदेश सरकार केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के कारण ‘मोज़र बेयर’ को उपकृत करने पर आमादा थी। लिहाजा, सरकार ने निविदा में शामिल सातों कम्पनियों से बिजली खरीदने का फैसला कर लिया। छठे नम्बर की कम्पनी को फायदा पहुंचाने के लिए सातवें नम्बर की कम्पनी की भी लॉटरी खुल गई। जिन कम्पनियों ने न्यूनतम दर कोट की थी, उन्हें अखिलेश यादव ने बेवकूफ बना दिया। ‘मोज़र बेयर’ कम्पनी कांग्रेस नेता कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की है। 2016-17 से 25 साल के लिए बिजली खरीदने का करार करने की अखिलेश यादव को इतनी छटपटाहट थी कि उन्होंने 2013 में ही इसका वारान्यारा कर दिया।
2017 से 25 साल के लिए करार। यानी, अखिलेश सरकार ने वर्ष 2042 तक के लिए यह करार किया। इस करार के लिए अखिलेश इतने बेकरार क्यों थे? इसकी वजहें तो हम भी समझते हैं और आप भी समझते हैं। नेताओं की समाजसेवा के यही असली निहितार्थ हैं…
अब हम मामले की तफसील में चलते हैं… अखिलेश सरकार ने छह हजार मेगावाट बिजली खरीदने के लिए निविदा आमंत्रित की थी। इसमें कुल 17 कम्पनियों ने हिस्सा लिया था। इनमें से ऊपर की सात कंपनियां उठा ली गईं, क्योंकि छठे नंबर पर कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की कंपनी मोज़र बेयर अंटकी थी। सात कंपनियों में एनएसएल पावर ने तीन सौ मेगावाट बिजली देने के लिए सबसे कम 4.48 रुपए प्रति युनिट की कीमत कोट की थी। टीआरएन इनर्जी ने 390 मेगावाट बिजली देने के लिए 4.886 रुपए प्रति युनिट, लैंको-बाबंध ने 390 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.074 रुपए प्रति युनिट, आरकेएम पावरग्रीन ने 350 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.088 रुपए प्रति युनिट, केएसके इनर्जी ने 1000 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.443 रुपए, मोज़र बेयर ने 361 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.730 रुपए प्रति युनिट और नवयुग पावर ने 800 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.843 रुपए प्रति युनिट कीमत कोट की थी।
न्यूनतम दर कोट करने वाली तीन कंपनियों का हाल कांग्रेस नेता कमलनाथ के प्रभाव और पूंजी के दबाव में भारतीय लोकतंत्र जैसा हो गया। तीनों कंपनियां अपनी जमानत राशि जमा कर फंस गईं। काम छोड़ा तो जमानत जब्त और काम पकड़ा तो घाटे का सौदा…
न्यूनतम दर कोट करने वाली तीन कम्पनियों ‘एनएसएल पावर्स’, ‘टीआरएन इनर्जी’ और ‘लैंको बाबंध’ के साथ सरकार का ‘पावर परचेज़ एग्रीमेंट’ पूरा भी हो गया था। लेकिन अचानक शीर्ष सत्ता की तरफ सेकेंद्रीय मंत्री कमलनाथ का संदर्भ सामने आया। संकेत पाते ही नौकरशाही ने तिकड़म बुनना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड की निविदा आकलन समिति (बिड इवैलुएशन कमेटी) ने पांचवें, छठे और सातवें नम्बर की कम्पनी को भी चयनित कम्पनियों की सूची में डाल लिया। ‘मोज़र बेयर’ छठे नम्बर पर थी। तो उसके एक ऊपर और एक नीचे वाले के भी ‘भाग’ खुल गए। अखिलेश सरकार ने सबसे ऊंची बोली लगाने वाली तीन कंपनियों को छह हजार में से दो हजार मेगावाट बिजली खरीदने का ठेका दे दिया। …’सत्यमेव जयते दिवस’ के एक दिन पहले एक अक्टूबर 2013 को अखिलेश सरकार ने ‘कमलनाथ जयते दिवस’ मना लिया। कमलनाथ मोज़र बेयर कंपनी के बड़े शेयरधारक हैं। आप खुद देखिए इस शपथनामे में उनकी यह स्वीकारोक्ति।
कमलनाथ पर इतना उपकार करने के बाद भी अखिलेश का मन नहीं भरा। आप आश्चर्य करेंगे कि अखिलेश यादव ने बिजली की सबसे ऊंची कीमत कोट करने वाली तीनों कंपनियों को दो हजार मेगावाट बिजली खरीदने के अलावा 2160 मेगावाट और अतिरिक्त बिजली खरीदने की परमिट भी दे दी। जिस समय यह करार हुआ उस समय ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय अग्रवाल थे। अग्रवाल योगी सरकार के भी उतने ही चहेते हैं, जितने अखिलेश सरकार के थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही ऊर्जा विभाग के प्रभारी मंत्री भी थे। सत्ता संभालने के बाद अखिलेश यादव यही कहते रहे कि मायावती सरकार 25 हजार करोड़ का बोझ डाल कर गईं। लेकिन अखिलेश यादव खुद 25 साल तक साढ़े चार हजार करोड़ रुपए के सालाना झटके का इंतजाम करके गए। योगी को इसका हिसाब-किताब करने की फुर्सत नहीं है। आपको यह बताने का प्रसंग भी बनता है कि वर्ष 2013 में केंद्रीय मंत्री कमलनाथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बहनोई दीपक पुरी की कंपनी को उत्तर प्रदेश में हजारों करोड़ का ठेका दिलाने में लगे थे, उसके दो साल पहले वे अपने प्रभाव के बूते बहनोई को पद्मश्री की उपाधि भी दिला चुके थे।
अखिलेश यादव ने कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी को तो फायदा पहुंचाया ही, कमलनाथ के भांजे रातुल पुरी के लिए भी सरकारी खजाना खोल दिया। कमलनाथ के भांजे को फायदा पहुंचाने के लिए नियम कानून और सरकारी प्रावधानों के साथ खुली धोखाधड़ी की गई। इस धोखाधड़ी पर कार्रवाई करने के बजाय अखिलेश सरकार ने इस धोखाधड़ी पर मुहर लगा दी। सरकार ने यूपी इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन यानी उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के जरिए इस धोखाधड़ी पर आधिकारिक मुहर लगवाई। इस कुचक्र में आयोग के तत्कालीन चेयरमैन देशदीपक वर्मा, सदस्य इंदुभूषण पांडेय और संजय अग्रवाल शामिल थे।
अखिलेश सरकार ने सौर ऊर्जा के नाम पर भी कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की कंपनी मोज़र बेयर के साथ 25 वर्षीय करार किया। 130 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए जिन सात कंपनियों के साथ ‘पावर परचेज़ एग्रीमेंट’ किया गया था उनमें कमलनाथ के बहनोई की कंपनी मोज़र बेयर शामिल थी, जिसे 20 मेगावाट प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली थी। प्रोजेक्ट शुरू करने की मियाद 13 महीने तय थी। लेकिन अखिलेश सरकार करार पर हस्ताक्षर कर तारीख भूल गई। जनवरी 2015 में करार हुआ और 13 महीने क्या, 39 महीने बीत गए। अब तक प्रोजेक्ट गति नहीं पकड़ सका। हर गांव में बिजली पहुंचाने का खोखला दावा करने वाली योगी सरकार को भी इससे कोई मतलब नहीं है कि कौन प्रोजेक्ट शुरू हुआ, कौन नहीं। पर सवाल सामने है कि ऐसा क्यों हुआ? सरकार के साथ मिलीभगत करके किस तरह हुई धोखाधड़ी… इसे जानना जरूरी है…
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अचानक स्पिनेल इनर्जी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और हिंदुस्तान क्लीन-इनर्जी लिमिटेड नामकी दो कंपनियोंने मोज़र बेयर के साथ हुए करार पर अपना दावा ठोक दिया। दावा ठोकने वाली दोनों कंपनियों ने कहा कि कि वे ही मोज़र बेयर कंपनी हैं। यह सब पूर्व प्रायोजित था। दो कंपनियों का दावा याचिका (Petition No. 1029 of 2015) की शक्ल में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग के समक्ष पहुंचा। याचिका में मांग की गई कि सोलर पावर प्रोजेक्ट का काम उन्हें ही दिया जाए। सौर ऊर्जा वाला विभाग यूपी-नेडा कहता रहा कि प्रोजेक्ट का करार मोज़र बेयर के साथ हुआ है, दूसरी कंपनी का दावा गैर कानूनी है। मोज़र बेयर होने का दावा करने वाली दोनों कंपनियों के मालिक कमलनाथ के भांजे रातुल पुरी निकले। फिर नियम-कानून कहां चलने वाला था। यूपी का खजाना लूटने के लिए सियासी हस्तियों के रिश्तेदारों ने धोखा-फरेब की इंतिहा कर दी।
सत्ता और पूंजी के दबाव के आगे नेडा की क्या चलती। कमलनाथ के बहनोई को ऑबलाइज़ करने के बाद बारी कमलनाथ के भांजे को उपकृत करने की थी.राज्य विद्युत नियामक आयोग सरकारी दस्तावेजों पर तारीख दर तारीख का रायता फैलाता रहा और आखिरकार एक दिन इस धोखाधड़ी पर स्वीकृति की आधिकारिक मुहर लगा दी… यह मंजूरी वर्ष 2016 में अखिलेश सरकार के जाने और योगी सरकार के आने के पहले ऐन मौके पर दी गई। बुंदेलखंड के उन ग्रामीणों की भी सुनिए जिनकी जमीनें स्पिनेल कंपनी ने लीज़ पर लीं, हर साल साढ़े सात फीसदी बढ़ा कर किराया देने का वादा किया, लेकिन वादा भूल गई। सरकारी करार मोज़र बेयर के नाम पर और जमीन लीज़ पर लेकर काम कर रही है स्पिनेल इनर्जी… है न यह दुख, आश्चर्य और हास्य देने वाला अपना मजाकिया सिस्टम..!
बुंदेलखंड के महोबा जिले में चरखारी तहसील के सूपा गांव में स्पिनेल इनर्जी एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और हिन्दुस्तान ईपीसी कम्पनी की संयुक्त ईकाई ने 20 मेगावाट सोलर पावर प्रोजेक्ट के लिए वर्ष 2015 में लगभग एक दर्जन किसानों की करीब सौ एकड़ भूमि 29 साल के लिए लीज़ पर ली है। किसानों को 16 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से भुगतान किया जा रहा है। किसान ठगा सा महसूस करते हैं, क्योंकि उनसे कहा गया था कि हर साल 7.50 प्रतिशत बढ़ाकर पैसा मिलेगा। लेकिन कंपनी ने यह वादा नहीं निभाया। यह भी विचित्र है कि कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की मोज़र बेयर कंपनी को बुंदेलखंड के महोबा जिले में कुलपहाड़ तहसील में सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाने का करार हुआ था। लेकिन दीपक पुरी के बेटे रातुल पुरी यानी कमलनाथ के भांजे की कंपनी स्पिनेल इनर्जी ने चरखारी तहसील के सूपा गांव में प्रोजेक्ट लगाया है।
यूपी की खाते भी हैं, गरियाते भी हैं कमलनाथ
प्रभात रंजन दीन