लखनऊ। हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे के दो मददगारों से एसटीएफ ने पूछताछ की। इनमें से एक मददगार ने विकास की एक मुकदमे में जमानत भी ली थी। इन दोनों ने एसटीएफ को बताया कि बिकरू कांड के बाद विकास दुबे से उनका सम्पर्क नहीं हुआ था। इन दोनों को पूछताछ के बाद छोड़ दिया गया।
एसटीएफ के एक अधिकारी के मुताबिक इन दोनों को लखनऊ के कृष्णानगर और बंथरा से बुलाया गया था। ये लोग विकास के सम्पर्क में पिछले 10 सालों से थे। इन दोनों ने यह भी बताया कि लखनऊ और कानपुर की जमीन के लिये स्टाम्प पेपर भी उनके माध्यम से ही खरीदे गए थे। विकास को जब उनसे काम होता था तो वह कानपुर से उन लोगों के लिये गाड़ी भिजवाता था। इसके अलावा कोई भी काम होता था तो उसके लिये मेहनताना के तौर पर कुछ रकम जरूर देता था। इतना ही नहीं विकास के लिये इन लोगों ने कई लोगों से सम्पर्क किया था जो विकास के लिये जमानत लेते थे। इनके भी नाम-पते एसटीएफ ने लिये हैं। विकास की जमानत लेने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई होगी, इस बारे में एसटीएफ अफसरों का कहना है कि अभी जांच चल रही है। इस बारे में आगे निर्णय लिया जायेगा। इन दोनों को इस एहतियात के तौर पर छोड़ा गया है कि जरूरत पड़ने पर दोबारा बुलाया जायेगा।
एसआईटी के सामने खुली विकास के आतंक की कहानी
दिल दहलाने वाले बिकरू कांडjऔर एनकाउंटर में मारे गए विकास दुबे से जुड़े मामलों की जांच करने पहुंची एसआईटी के सामने हिस्ट्रीशीटर के आतंक की कहानी खुलकर सामने आई। विकास के खौफ के साए में जी रहे लोगों को सुरक्षा का भरोसा दिया तो सामने आकर उन्होंने दर्द बयां किया। कभी न बोलने वाले, रास्ता बदलकर गुजरने वाले लोगों ने अपनी पीड़ रखी। किसी ने अपनी जमीन पर कब्जे की शिकायत की तो किसी ने थाने में पीटने की जानकारी दी।
घटनास्थल का मुआयना करने के बाद जांच दल ने ग्रामीणों से भी विकास की करतूतों पर चर्चा की। कुछ लोग एसआईटी के सामने पेश किए गए। विकास और उसके गुर्गे नहीं थे तो गांव के लोगों ने खुलकर बात रखी। गफूर ने बताया कि बात 1993-94 की है। उन्होंने राशन नहीं मिलने की शिकायत की थी। विकास ने शिवली थाने बुलवाया। पुलिस की मौजूदगी में उसे थाने के भीतर पीटा गया। सुशील पांडेय ने बताया कि पहले उनके पिता अटल बिहारी पांडेय ग्राम प्रधान हुआ करते थे। विकास ने बूथ कैप्चरिंग कराकर प्रधानी पर कब्जा किया तो अभी तक उसके चंगुल से मुक्त नहीं हो पाई। उसके भय से लोग वोट डालने से कतराते थे। गोकुल ने बताया कि विकास अपनी सरकार चलाता था। गांव में यदि किसी का विवाद होता था तो गुर्गों को भेजकर घर पर बुलवा लेता था। घर के अपने लोगों से पिटवाता था। बकरुद्दीन ने एसआईटी को बताया कि उसे पट्टे पर जमीन मिली थी। विकास ने अपने खास को कब्जा दिला दिया। तहसील, थाने के चक्कर आज तक लगा रहे हैं लेकिन उसे कब्जा नहीं मिल पाया। राजू ने बताया कि उसने शिवराजपुर की एक एजेंसी से ट्रैक्टर खरीदा था। किस्त नहीं जमा कर पाया तो ट्रैक्टर सरेंडर कर दिया। बदले में 1.30 लाख रुपए मिलने थे लेकिन विकास ने किसी दूसरे को ट्रैक्टर दिलवा दिया। ट्रैक्टर की किस्त आज भी वह भर रहा है।