नई दिल्ली। राजस्थान की सियासत में सचिन पायलट की बगावत के बाद अशोक गहलोत की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर संकट गहराया गया है. दूसरी तरफ बीजेपी ने सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के स्वागत के लिए रेड कारपेट बिछा दिया है.
ये सच है कि अगर सचिन पायलट बीजेपी में शामिल होते हैं, तो यह बीजेपी के लिए सोने पर सुहागा का काम करेगा, क्योंकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत में गुजर और मीणा जातियों का बहुत बड़ा योगदान रहा हैं. दोनों जातियों की लगभग 8-8 प्रतिशत वोट बैंक हैं. पूर्वी राजस्थान की अजमेर, दौसा, करोली, भीलवाड़ा, कोटा, अलवर, जयपुर ग्रामीण, बूंदी, कोटा, टोंक, सवाईमाधोपुर और उदयपुर की 65 सीटों पर गुजर और मीणा जातियां निर्णायक भूमिका में रहती हैं.
सचिन पायलट के साथ लगभग 12 विधायक ऐसे हैं, जो गुजर और मीणा जातियों में अच्छा ख़ासा प्रभाव रखते हैं. मीणा और गुजरों के बड़े नेता किरोड़ीलाल मीणा और कर्नल बैसला पहले से ही बीजेपी में हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के आने के बाद बीजेपी की पूर्वी राजस्थान में ताकत लगभग दोगुनी हो जाएगी.
सीएम पद के लिए बीजेपी में भी हो सकती है खींचतान
राजस्थान में जिस तरह की सियासत चल रही है, वो कांग्रेस के लिए भले ही आज एक काला अध्याय हो, लेकिन आने वाले दिनों में बीजेपी के लिए भी सिरदर्द बन सकती है. अगर सचिन पायलट के कंधों के सहारे बीजेपी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पटकनी दे दी, तो बीजेपी के सामने सबसे बड़ी समस्या होगी, बीजेपी का मुख्यमंत्री कौन होगा- वसुंधरा राजे सिंधिया या गजेंद्र सिंह शेखावत या फिर बीजेपी का कोई दूसरा दिग्गज.
वसुंधरा राजे सिंधिया राजस्थान में दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और बीजेपी की सबसे लोकप्रिय नेता हैं. कई बार बीजेपी नेतृत्व ने वशुंधरा राजे को साइडलाइन करने की कोशिश की, लेकिन हर बार मुंह की खानी पड़ी. साल 2008 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद राजनाथ सिंह के अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने फैसला लिया था कि वसुंधरा राजे को नेता विपक्ष पद से इस्तीफा देना होगा, उसके बाद तत्कालीन 78 विधायकों में से 63 विधायकों ने दिल्ली में राजनाथ सिंह के घर के बाहर पार्टी के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया था. साथ ही वसुंधरा राजे ने 8 महीने तक राजनाथ सिंह के बीजेपी अध्यक्ष रहते हुए नेता विपक्ष पद से इस्तीफा नहीं दिया था.
राजे के खिलाफ अमित शाह भी नहीं ले पाए फैसला
इसके बाद जब नितिन गडकरी बीजेपी अध्यक्ष बने, तो साल 2013 में वसुंधरा राजे को फिर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करके चुनाव लड़ा, तो बीजेपी ने दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई. साल 2014 में बीजेपी में अटल-आडवाणी युग की समाप्ति हो गई और मोदी व अमित शाह युग की शुरुआत हुई.
साल 2018 के विधानसभा चुनाव आते-आते वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीच बहुत कुछ ठीक नहीं रहा और 2018 के चुनाव से पहले अमित शाह गजेंद्र सिंह शेखावत को राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वसुंधरा राजे के विरोध के बाद अमित शाह भी गजेंद्र सिंह शेखावत को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बना पाए थे. उस समय राजस्थान के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और बीजेपी राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर ने रास्ता निकाला था. इसके बाद मदन सैनी को राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष बनाने पर सहमति बनी थी.
अब यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि अशोक गहलोत की सरकार गिरती है, तो बीजेपी किसके सिर पर सेहरा बांधती है. अगर बीजेपी ने वसुंधरा राजे के अलावा किसी और के सिर पर सेहरा बांधा, तो वसुंधरा राजे के लगभग 50 से ज़्यादा समर्थक विधायक पार्टी के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं. मतलब साफ है कि बीजेपी में भी आपसी सिर फुटव्वल सामने आ सकती है.