जब आजाद भारत में हुआ एक राजा का फर्जी एनकाउंटर, छिन गई थी सीएम की कुर्सी, 35 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने मुठभेड़ को फर्जी माना

नई दिल्ली। राजा मानसिंह को खुद्दारी पसंद थी, किसानी पसंद थी, जनता की सेवा में उनका मन रमता था. वह किसानों के राजा और राजाओं में किसान थे. आजादी से पहले उन्होंने ब्रिटेन से इंजीनियरिंग की डिग्री ली और सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट हो गए. लेकिन अग्रेजों से निभ नहीं पाई और उन्होंने नौकरी छोड़ दी. 1952 से लेकर 1984 तक वह 7 बार निर्दलीय विधायक चुने गए. दगाबाजी बर्दाश्त नहीं कर पाए और मुख्यमंत्री के हेलिकॉप्टर को अपनी जीप से टक्कर मार दी. अगले दिन पुलिस ने उन्हें घेर कर मार दिया और इसे मुठभेड़ का नाम दे दिया. 35 साल बाद सीबीआई कोर्ट ने मुठभेड़ को फर्जी माना है और 11 पुलिसकर्मियों को दोषी करार दिया है.

कहानी है भरतपुर रियासत के राजा मानसिंह की जो अपने चार भाइयों में तीसरे नंबर पर थे. उनका जन्म 1921 में हुआ था. बड़े भाई बृजेंद्र सिंह महाराज हुआ करते थे. मानसिंह बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे, उन्हें मैकेनिकल इंजीनियरिंग करने ब्रिटेन भेजा गया. वहां से डिग्री लेने के बाद वह सेकंड लेफ्टिनेंट हो गए. लेकिन यह बात अपने बड़े भाई को नहीं बताई. भरतपुर रियासत के लोग गाड़ियों और महल में दो झंडे लगाते थे एक देश का, दूसरा रियासत का. अंग्रेजों से इसी बात पर इनकी अनबन हो गई और उन्होंने नौकरी छोड़ दी, आजादी के बाद वह राजनीति में आ गए.

जमाना कांग्रेस का था. लेकिन राजा मानसिंह को किसी दल में जाना मंजूर नहीं था. कांग्रेस से उनका समझौता था कि वह उनके खिलाफ उम्मीदवार भले उतारे लेकिन कोई बड़ा नेता प्रचार करने नहीं आएगा. 1952 से 1984 तक वह लगातार निर्दलीय चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे. 1977 की जनता लहर और 1980 की इंदिरा लहर में भी अपनी सीट बचाने में कामयाब रहे. लेकिन कुछ लोगों को यह बात खटकती रही कि आखिर भरतपुर रियासत में दो झंडे क्यों लगते हैं. मानसिंह को कांग्रेस वॉक ओवर क्यों देती है. अगर हम दूसरी सीटें जीत सकते हैं तो डीग क्यों नहीं.

1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति की लहर थी. 1985 में राजस्थान में विधानसभा चुनाव हो रहे थे. तब राजस्थान के मुख्यमंत्री हुआ करते थे शिवचरण माथुर. बताया जाता है कि उन्होंने डीग की सीट को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया. उन्होंने रिटायर्ड आईएएस बिजेंद्र सिंह को डीग से कांग्रेस उम्मीदवार घोषित कर दिया और 20 फरवरी 1985 को उनका प्रचार करने डीग पहुंच गए. इससे पहले उत्साहित कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कई जगहों पर राजा मानसिंह के पोस्टर, बैनर और रियासत के झंडे फाड़ दिए.

राजा मानसिंह को यह बात नागवार गुजरी. शिवचरण माथुर के पहुंचने से पहले ही वह अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के सभास्थल पहुंचे और मंच को तहस-नहस कर दिया. इसके बाद वह जोंगा जीप से हेलिपैड की तरफ निकले जहां सीएम शिवचरण माथुर का हेलिकॉप्टर खड़ा था. माथुर सभा स्थल की ओर निकल चुके थे और राजा मानसिंह हेलिपैड पर. तमतमाए राजा ने जीप से हेलिकॉप्टर को कई टक्कर मारी. माथुर को सड़क मार्ग से जयपुर जाना पड़ा. इसके बाद वहां पर आक्रोश फूट पड़ा. आशंका जताई गई कि कांग्रेस और राजा के समर्थक भिड़ सकते हैं, इसलिए कर्फ्यू लगा दिया गया. राजा के खिलाफ केस दर्ज कराया गया.

बताया जाता है कि 21 फरवरी को राजा मानसिंह अपने समर्थकों के साथ अपनी जीप से निकले. उनके चाहने वालों ने उन्हें मना किया. उन्हें बताया गया कि कांग्रेस की सरकार है और आपने सीधे मुख्यमंत्री को चुनौती दी है, कर्फ्यू भी लगा हुआ लेकिन राजा मानसिंह का कहना था उनकी रियासत में उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा. राजपरिवार का कहना है कि राजा मानसिंह थाने में समर्पण करने जा रहे थे. तभी डीग मंडी के पास डिप्टी एसपी कान सिंह भाटी और उसके साथी पुलिसकर्मियों ने उन्हें घेर लिया और ताबड़तोड़ फायरिंग कर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया. उनके साथ बैठे हरी सिंह और सुमेर सिंह की भी हत्या कर दी गई. पुलिस इसे मुठभेड़ साबित करने पर तुली रही. राजा मानसिंह के दामाद विजय सिंह ने कान सिंह भाटी समेत 18 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया.

man2_072220090533.pngकान सिंह भाटी

इस घटना के बाद पूरा भरतपुर जल उठा. इसकी तपिश मथुरा, आगरा और पूरे राजस्थान में महसूस की गई. देश के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ था कि किसी सिटिंग एमएलए का दिनदहाड़े एनकाउंटर किया गया था. तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर पर आरोप लगे कि उनकी शह पर पुलिस ने राजा की हत्या की है. केंद्र तक यह बात पहुंची. 23 फरवरी 1985 को माथुर को इस्तीफा देना पड़ा. हीरा लाल देवपुरा को सीएम बनाया गया.

इसके बाद हुए चुनाव में राजा मानसिंह की पुत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा विधायक चुनी गईं. मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई. इस बीच 1990 में दीपा भरतपुर से भारतीय जनता पार्टी की सांसद चुनी गईं. उन्होंने राजनीतिक विरासत संभालने के साथ ही इस मामले को अंजाम तक पहुंचाने का प्रण लिया. उनकी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच मथुरा ट्रांसफर की.

इस मामले की पैरवी कर रहे वकील नारायण सिंह विप्लवी का कहना है कि न्याय पाने में वर्षों लग गए. जबकि पुलिस ने नृशंस हत्या की थी. हमारी तरफ से 61 गवाह पेश किए गए और पुलिस की तरफ से 16 लेकिन उन्होंने गलती की थी इसलिए उनका हारना तय था.

इन पांच तर्कों के आधार पर मिली जीत

1- एडवोकेट विप्लवी ने बताया कि हम यह साबित करने में सफल रहे कि राजा को घेरकर मारा गया. पुलिस ने राजा की जीप के आगे अपनी जीप अड़ा दी. इसके बाद मानसिंह की कनपटी पर गोली मारी गई जो उनके साथ बैठे 2 और लोगों के सिर में लगी और तीनों की मौत हो गई.

2- मानसिंह के सीने में भी गोली मारी गई थी, गोली नजदीक से मारी गई थी, अगर मुठभेड़ होती है तो गोली दूर से चलती.

3- जीडी में जिक्र किया गया कि राजा मानसिंह की तलाश में पुलिस टीम निकल रही है और उसके 4 मिनट बाद ही मुठभेड़ दिखा दी गई.

4- पुलिसवालों का तर्क था कि राजा से बहस हुई और उन्होंने हथियार निकाल लिए इसके बाद पुलिस ने गोली चलाई. पुलिस ने एक कट्टा बरामद दिखाया. बाद में साबित हो गया कि पुलिस ने प्लांट किया था. राजा के पास तो कोई हथियार ही नहीं था.

5- सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही कि गवाहों ने सच-सच सारी बातें कोर्ट को बताईं, कोई गवाह अपनी बात से मुकरा नहीं.

इस फैसले के बाद राजा मानसिंह की पुत्री और पूर्व मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा ने कहा कि आज उनके पिता की आत्मा को शांति मिली है. उन्होंने बताया कि 1700 तारीख पड़ीं, कई जज बदले, 35 वर्षों बाद फैसला आया है. इसमें 18 पुलिसकर्मियों के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट पेश की थी, इनमें से 4 की मौत हो गई. तीन साक्ष्यों के अभाव में बरी हो गए, 11 पुलिसवालों को दोषी पाया गया है.

यह आजाद भारत का ऐसा फेक एनकाउंटर था जिसने सरकार की चूलें हिली दी थीं. मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *