अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद तालिबान के आगे सबसे बड़ी चुनौती अपनी सरकार को दुनियाभर में मान्यता दिलाना है। इसके लिए सबसे अहम मंच है संयुक्त राष्ट्र, जहां पाकिस्तान और चीन के रूप में पहले से ही तालिबान के पैरोकार मौजूद हैं। खुद तालिबान ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव को चिट्ठी लिखकर यूएन जनरल एसेंबली में अफगान का प्रतिनिधित्व करने देने की मांग की थी। हालांकि, तालिबान का यह सपना फिलहाल पूरा नहीं हो सकेगा, फिर चीन और पाकिस्तान भी कितना ही जोर क्यों न लगा लें।
तालिबान की चिट्ठी पर दरअसल, 9 सदस्यों वाली क्रीडेंशियल कमेटी को फैसला लेना है और 27 सितंबर से इस कमेटी की बैठक हो पाना असंभव माना जा रहा है और अगर कमेटी की बैठक हो भी जाती है तो इस विवाद का हल सिर्फ एक या दो दिन में निकालना लगभग नामुमकिन है। मौजूदा समय में इस कमेटी के सदस्य अमेरिका, रूस, चीन, बाहामास, भूटान, चिली, नामिबिया, सिएरा लियोन और स्वीडन हैं।
15 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतेरस को अफगान की पूर्व सरकार की ओर से नामित राजदूत गुलाम इसाकजाई की तरफ से एक चिट्ठी मिली थी। इस चिट्ठी में इसाकजाई ने बताया था कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के इस सत्र में वे और उनकी टीम के अन्य सदस्य अफगानिस्तान का प्रतिनिधित्व करेंगे।
संयुक्त राष्ट्र प्रवक्ता स्टीफन दुजारिक ने दोनों ही पक्षों की चिट्ठी मिलने की पुष्टि की। हालांकि, 27 सितंबर तक चलने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा में तालिबान को इस बार बोलने का मौका शायद ही मिलेगा।