तालिबान के शासन में आने के बाद अफगानिस्तान लगातार मुसीबतों का सामना कर रहा है। यहां तालिबान के लिए नेशनल रेजिस्टेंस फोर्स और इस्लामिक स्टेट-खोरासन प्रॉविंस को रोकना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। नतीजा, बड़ी संख्या में लोगों की मौत। हालांकि तालिबान लगातार इस बात से इंकार करता है कि आईएस का वहां कोई वजूद और खतरा नहीं है। लेकिन मस्जिदों, स्कूलों और कारों पर इस ग्रुप के हमले कुछ और ही कहानी कहते हैं। पिछले साल अगस्त में तालिबान द्वारा शासन संभालने के बाद से अफगानिस्तान में हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी हुई है।
आंकड़ों की बात करें तो यहां पर अगस्त महीने में 366 लोग आतंकी घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं। यह जुलाई की तुलना में हुई 244 मौतों की तुलना में काफी ज्यादा थी। इससे पहले जून में 367 और मई में 391 लोग ऐसी ही घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके थे। अगस्त में 77 आम लोगों ने अपनी जान गंवाई, जबकि जुलाई में यह संख्या 68 थी। 17 अगस्त को 21 लोगों की जान गई, जिसमें एक नामी धर्मगुरु मुल्ला आमिर मोहम्मद काबुली भी शामिल था, मारा गया। वहीं काबुल में 33 लोग अबू बकर मस्जिद में हुए हमले में घायल हुई थे। हालांकि इस हमले कि किसी ने जिम्मेदारी नहीं ली थी, लेकिन हमले का तरीका देखकर अनुमान था कि इसमें आईएस का ही हाथ था।
इन सारी घटनाओं के साथ तालिबान के आंतरिक संघर्ष भी उसके लिए मुसीबत साबित हुआ है। 27 अगस्त को तालिबान के अंदरूनी संघर्ष में तीन तालिबान सदस्य मारे गए। यह घटना बगलाम प्रांत के ताला वा बरफाक जिले में हुई थी। 21 अगस्त को पंजशीर में ऐसी ही एक घटना में एक तालिबानी सदस्य मारा गया था और दूसरा घायल हुआ था। अफगान मंत्रालय के दावों के मुताबिक मारा गया शख्स बागी कमांडर मौलवी मेहदी मुजाहिद था, जिसने तालिबान से अलग होकर एक नया गुट बनाया था।
अगस्त में आईएस ने काबुल, कुनार और नांगरहार प्रांत में 12 हमलों में 45 तालिबानियों को मौत के घाट उतारा और 120 को घायल किया था। वहीं तालिबान के लिए नेशनल रेजिस्टेंस फ्रंट भी एक बड़ी चुनौती है। 26 अगस्त को एनआरएफ कमांडर खालिद अमीरी लोगों से तालिबान के खिलाफ एकजुट होने की गुहार लगा रहा था। उसने कहा कि तालिबान एक आतंकी संगठन है। साथ ही उसने क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय तालिबान के खिलाफ प्रतिबंधों का भी समर्थन किया।