लखनऊ। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) ‘नेताजी’ का लंबी बीमारी के बाद गुरुग्राम के एक अस्पताल में सोमवार को निधन हो गया. उन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य के सबसे प्रमुख राजनीतिक वंश को जन्म दिया. सैफई के पहले परिवार ने ‘नेताजी’ के कई रिश्तेदारों को राजनीति में प्रवेश करते देखा है, जबकि अन्य पारिवारिक संबंधों से विभिन्न पार्टियां जुड़ी हुई हैं. नवंबर 1939 में जन्मे, मुलायम ने तीन कार्यकालों के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा सरकार के तहत केंद्रीय रक्षा मंत्रालय को भी संभाला.
भारत के सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवारों में से एक, यादव वंश ने न केवल काफी दबदबा कायम किया, बल्कि कई उतार-चढ़ाव भी देखे क्योंकि सत्ता के संघर्ष ने न केवल पार्टी बल्कि परिवार को भी बांट देने की कोशिश की थी.
मुलायम सिंह यादव के परिवार पर एक नज़र:
मुलायम सिंह यादव की दो शादियां हुई थीं. उनकी पहली पत्नी मालती देवी, जिनसे उनके बेटे अखिलेश यादव हैं, का लंबी बीमारी के बाद 2003 में निधन हो गया था. अखिलेश यादव ने डिंपल यादव से शादी की है जो कन्नौज लोकसभा से दो बार की सांसद हैं. मुलायम सिंह यादव की 2007 में दूसरी शादी की पहली आधिकारिक पुष्टि तब हुई जब उन्होंने अपनी आय के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया. दस्तावेज में साधना गुप्ता को उनकी दूसरी पत्नी और प्रतीक यादव (पहले की शादी से उनके बेटे) को उनके बेटे के रूप में सूचीबद्ध किया गया.
प्रतीक यादव की शादी अपर्णा यादव से हुई है, जिन्होंने अपने ससुर की इच्छा के विपरीत, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने का फैसला कर सबको चौंका दिया था. ठाकुर-बिष्ट पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाली अपर्णा एक प्रशिक्षित और योग्य शास्त्रीय गायिका भी हैं. उन्होंने 2017 में समाजवादी पार्टी के टिकट पर लखनऊ कैंट से यूपी विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद राजनीति में शामिल होने की इच्छा जाहिर की थी. मुलायम की ‘छोटी बहू’ के भगवा पार्टी से हाथ मिलाने के फैसले से परिवार और सपा को काफी शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी.
भाई शिवपाल सिंह यादव ने पार्टी छोड़, नई पार्टी बनाई
सपा के मुखिया मुलायम सिंह यादव का एक और रिश्ता जो चर्चा में रहा है, वह है उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव का. शिवपाल सिंह ने पार्टी छोड़ दी और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का गठन किया. शिवपाल के साथ विवाद 2012 में हुआ जब मुख्यमंत्री बने अखिलेश यादव ने अपने पिता के छोटे भाई को दरकिनार कर दिया. इसने समाजवादी पार्टी के भीतर दो गुटों को जन्म दिया. एक समूह ने अखिलेश का समर्थन किया और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव राम गोपाल यादव (उनके पिता के चचेरे भाई) के समर्थन का आनंद लिया. तो दूसरी तरफ प्रतिद्वंद्वी गुट ने शिवपाल का समर्थन किया. जैसे-जैसे झगड़ा बढ़ता गया, अखिलेश ने अपने चाचा को अपने मंत्रिमंडल से दो बार निकाला. सार्वजनिक लड़ाई का चरमोत्कर्ष तब आया जब मुलायम ने अनुशासनहीनता के आधार पर अपने बेटे को छह साल के लिए पार्टी से निकाल दिया था.
पार्टी से निष्कासन के ठीक एक दिन बाद अध्यक्ष बने अखिलेश
हालांकि, यह समाजवादी गाथा का अंत नहीं था. एक दिन बाद अखिलेश का निष्कासन रद्द कर दिया गया, तो उन्होंने समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के रूप में अपने पिता की जिम्मेदारी छीन ली. जनवरी 2017 में एक राष्ट्रीय सम्मेलन के बाद उन्हें पार्टी का ‘मुख्य संरक्षक’ नामित किया गया. बाद में मुलायम ने इस आयोजन को अवैध करार दिया और अपने चचेरे भाई राम गोपाल यादव को इसे आयोजित करने के लिए निष्कासित कर दिया. लेकिन भारत के चुनाव आयोग ने इस आदेश को उलट दिया था. राज्य विधानसभा चुनावों से कुछ हफ्ते पहले, चुनाव आयोग ने अखिलेश के खेमे को आधिकारिक पार्टी चिह्न का उपयोग करने की अनुमति दी और शिवपाल ने मुलायम के साथ समाजवादी धर्मनिरपेक्ष मोर्चा बनाने की योजना की घोषणा की. महीनों बाद, मुलायम सिंह यादव ने इस चर्चा को खारिज कर दिया और कहा कि वह एक नई पार्टी का गठन नहीं होने देंगे और ना ही किसी नई पार्टी में शामिल होंगे.