चीन की ‘जीरो-कोविड पॉलिसी’ के खिलाफ देश के युवा बीते साल नवंबर में सड़कों पर उतर आए थे। इस विरोध-प्रदर्शन के तीन महीने से अधिक समय बीत जाने के बाद भी उनकी गिरफ्तारियां जारी हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नीति के खिलाफ जिन लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया था, उनमें से कई अब जीवित नहीं है। दावा किया जा रहा है कि चीनी प्रशासन की ओर से प्रदर्शनकारियों के साथ बेहद कठोर बर्ताव किया गया। चीनी मीडिया की ओर से पब्लिक मेमोरी से इस प्रदर्शन को भूला देने के भी प्रयास किए जा रहे हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक, व्हाइट पेपर प्रोटेस्ट के बाद से चीन में रैलियों को बहुत कम मीडिया कवरेज मिल रहा है। चीनी अधिकारियों की ओर से उन युवा पेशेवरों को हिरासत में लेने के लिए हर तरह के कानूनी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, जिन्होंने सीपीसी की पॉलिसी के खिलाफ हुए प्रदर्शन में भाग लिया था। चीन की पुलिस ने नए साल में कई गिरफ्तारियां की हैं। सूत्रों के हवाले से इनकी संख्या 100 से अधिक बताई जाती है। दरअसल, कई प्रदर्शनकारियों ने अमेरिका और ब्रिटेन में पढ़ाई-लिखाई की है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय अधिकार संगठनों और विदेशी संस्थानों की ओर से उनकी रिहाई की मांग उठाई जा रही है।
राजधानी बीजिंग समेत शंघाई, ग्वांगझू और नानजिंग सहित दूसरे शहरों में विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वालों की भी गिरफ्तारियां हुई हैं। एक्टिविस्ट ग्रुप्स की ओर से इसे लेकर लिस्ट भी सार्वजनिक की गई है। बीजिंग में प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार किए जाने वाले अधिकांश प्रदर्शनकारी दोस्त थे। ये एक ग्रुप से जुड़े हुए थे जो बुक क्लब, मूवी स्क्रीनिंग, आर्ट और डिबेट को लेकर बनाया गया था। इनमें से ज्यादातर लोग काफी पढ़े-लिखे हैं। ये लेखक, पत्रकार, संगीतकार, शिक्षक या फाइनेंशियल सेक्टर में काम वाले लोग थे।
‘बोलने की हिम्मत दिखाने की चुका रहे कीमत’
ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने इन गिरफ्तारियों की कड़ी निंदा की है। HRW की ओर से कहा गया कि चीन में युवा स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के लिए बोलने की हिम्मत की भयानक कीमत चुका रहे हैं। साथ ही अधिकारियों की ओर से बंदियों के दोस्तों और वकीलों को भी धमकी दी जा रही है। 27 नवंबर, 2022 को बीजिंग में लियांगमा नदी के किनारे आयोजित शांतिपूर्ण जुलूस में कई महिलाओं ने भी भाग लिया। उरुमकी में एक अपार्टमेंट में लगी आग के पीड़ितों के सम्मान में ये लोग एकजुट हुए थे। दरअसल कोरोना प्रतिबंधों के बाद कई पीड़ित वहां से बाहर नहीं निकल पाए थे। इसे लेकर लोगों का गुस्सा भड़क गया था। बताया जा रहा है कि कई महिला प्रदर्शनकारियों को भी हिरासत में रखा गया है।