नीतीश कुमार का सियासी कद बढ़ा रहा ‘विपक्षी एका’

निशिकांत ठाकुर।निशिकांत ठाकुर।निशिकांत ठाकुर।निशिकांत ठाकुर

इस पहली बैठक में अभी भविष्य के लिए संभावित प्रधानमंत्री का चेहरा तय नहीं किया गया है, लेकिन द्विअर्थीय संवादों से बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने एक इशारा राहुल गांधी के लिए कर दिया है कि ‘आप शादी कर लीजिए, बारात पूरा विपक्ष चलेगा।’ बैठक में शामिल सभी विपक्षी दलों ने साथ जुड़ने की जो एकजुटता दिखाई है, वह भाजपा के 80 का दशक की याद दिलाता है, जब संसद में भाजपा के दो सदस्य हुआ करते थे और फिर 42 दलों के साथ मिलकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग, एनडीए) बनाया गया और जनता कांग्रेस के शासन से ऊबकर आज 303 संसद सदस्यों के साथ विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र की बागडोर उनके हाथों में पकड़ा दी।

भाजपा ने विपक्ष बैठक को फोटो सेशन बताया

इन  विपक्षी दलों की बैठक पर तरह-तरह से आलोचना भी होगी और इनकी एकता को तोड़ने का भरपूर प्रयास भी किया जाएगा। इस विपक्षी एकता बैठक के कई मायने निकाले  जा रहे हैं। पहला यह कि सत्तारूढ़ भाजपा को अपने सूत्रों से जो जानकारी मिली होगी, उससे वह डर गई और आलोचना करने लगी। तर्कहीन आलोचना की शुरुआत गृहमंत्री तथा भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कर दी है और कहा कि पटना में आयोजित विपक्षी एकता की बैठक एक फोटो सेशन है।

अनुराग ठाकुर ने कहा कि ‘भ्रष्टों का महाठगबंधन बिखर जाएगा’

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा कि ‘भ्रष्टों का महाठगबंधन (महागठबंधन) ताश के पत्तों की तरह बिखर जाएगा।’ दूसरा यह कि इस बैठक में शामिल कई विपक्षी दलों के नेताओं को तरह-तरह के प्रलोभन देकर ईडी, सीबीआई का डर दिखाकर उन्हें तोड़ने का प्रयास किया जाएगा, जिसकी शुरुआत बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री की पार्टी को तोड़कर कर दिया गया है। वैसे, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी प्रदेश में उतने प्रभावशाली नहीं हैं कि उनका दल भाजपा के लिए राज्य में जीत की राह आसान कर सके। ऐसा इसलिए कि यदि उनका दल इतना प्रभावशाली होता तो फिर कभी नीतीश कुमार मुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे।

वैसे, जीतनराम मांझी की योजना तो यही थी कि मुख्यमंत्री द्वारा विश्वास में दी गई कुर्सी पर स्थायी रूप से काबिज हो जाएं, लेकिन राजनीतिक रूप से मंझे हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने उनकी नहीं चली और तभी से वह सरकार को अस्थिर करने के लिए प्रदेश में षड्यंत्र रचते रहे हैं। इसका अवसर उन्हें अब मिला है, जब सभी विपक्षी एकजुट होकर भाजपा के विरुद्ध हो रहे थे। उन्हें अपना खेमा बदलना पड़ा और अब भाजपाई जुमलों से प्रभावित होकर कुर्सी के लोभ में भाजपा में शामिल हो गए।

विपक्ष डरा हुआ है, केजरीवाल ने नहीं लिया प्रेस कांफ्रेंस में हिस्सा

सच तो यह है कि डरा हुआ तो विपक्ष है ही; क्योंकि प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सहित कई नेताओं को यही डर तो सता रहा है कि यदि 2024 में भाजपा सत्ता में फिर वापस लौट आई तो उसके बाद देश में चुनाव नहीं होंगे। दिल्ली और पंजाब के  मुख्यमंत्रियों, क्रमश: अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान प्रेस कान्फ्रेंस में हिस्सा न लेने को भी उसी रूप में देखा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी विपक्षी एकता के पक्ष में नहीं है। आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस से समर्थन की मांग करते हुए कहा कि इसके बिना उनके लिए किसी भी गठबंधन में शामिल होना मुश्किल होगा।

वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी दिल्ली में आप प्रवक्ता के आरोपों को लेकर केजरीवाल से कड़ी नाराजगी जताई। इस बीच, दोनों नेताओं के बीच कहासुनी भी हो गई, जिसे टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने शांत करवाया। विपक्षी दलों के जितने भी नेता इस बैठक में शामिल हुए थे, सभी ने एकता पर सहमति जताई और भाजपा के प्रति अपनी नाराजगी जताते हुए अगली बैठक, जिसके लिए 13-14 जुलाई को बंगलुरू में करने का निश्चय किया गया है, में यह तय किया जाएगा कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा। ऐसा इसलिए, क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सभी राज्यों के लिए अलग-अलग ढंग से काम करना होगा।

Opposition Meeting in Patna.
शुक्रवार, 23 जून, 2023 को पटना में विपक्षी दलों की बैठक के बाद एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद।

यह स्पष्ट है कि गैर-भाजपा दलों के बीच यह अहसास बढ़ रहा है कि आपसी दुश्मनी उन्हें भाजपा का आसान शिकार बना सकती है, जिसकी सत्ता की भूख पचास वर्ष राज्य करने की है। तथ्य यह है कि इनमें से अधिकांश गैर-भाजपा पार्टियां कांग्रेस और भाजपा की राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी के प्रति शत्रुता से पैदा हुई थीं, आम जमीन ढूंढना और भी अधिक अस्पष्ट हो जाता है। हिंदी पट्टी में भाजपा का दबदबा है, जबकि कई राज्यों में उसे क्षेत्रीय दलों के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्रीय दलों के बीच गठबंधन से वोटों का स्थानांतरण नहीं होता; क्योंकि वे अलग-अलग क्षेत्रों में मौजूद हैं। इनमें से कुछ पार्टियां राज्य स्तर पर प्रतिद्वंद्वी हैं, जैसा कि केरल में वामपंथियों और कांग्रेस के मामले में हुआ।

इसलिए, आमतौर पर कहें तो चुनाव पूर्व गठबंधन का परिणाम सीमित होता है। नीतीश कुमार जब से महागठबंधन का हिस्सा बने, तभी से ही विपक्षी एकता की बात होने लगी। महागठबंधन के बड़े घटक दल राजद ने नीतीश को विपक्ष का पीएम फेस बनाने का राग अलापना शुरू किया। नीतीश पहले तो खामोश रहे, पर बाद में उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे पीएम फेस नहीं हैं। अलबत्ता विपक्ष को एकजुट करने के अभियान की बात लगातार कहते रहे।

एकता मिशन के तहत वे कई विपक्षी दलों के शीर्ष नेताओं से मिले। इसके बावजूद ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक, तेलंगाना के सीएम केसी राव, आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी ने विपक्षी एकता में रुचि नहीं दिखाई। यानी, विपक्ष शासित तीन प्रदेशों के सीएम बैठक से दूर रहेंगे। उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकीं बसपा सुप्रीमो मायावती को विपक्षी एकता मिशन से अलग ही रखा गया।

यदि विपक्षी दलों की एकता परवान चढ़ गया तो निश्चित तौर पर यह मानना पड़ेगा कि बिहार के मुखमंत्री नीतीश कुमार लोकनायक जयप्रकाश नारायण के पदचिह्नों पर चल रहे हैं; क्योंकि उन्होंने प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में अपने को सामने लाने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है। वैसे, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव बिहार में लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन में कठिन परिश्रम के बल पर आगे बढ़े नेता हैं। बिहार के ये दोनों सर्वमान्य नेता हैं, साथ ही देश के हर राज्य के लोग इन दोनों को जानते हैं, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर जो छवि अब राहुल गांधी की विकसित हो गई है, उससे कोई इनकार नहीं कर सकता।

भारत जोड़ो यात्रा ने बदली है राहुल गांधी की छवि

सत्तारूढ़ भाजपा राहुल गांधी की छवि को सार्वजनिक रूप से अयोग्य और नकारा साबित करने के लिए जो कुछ किया था, वह सब केवल एक ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने नाकाम कर दिया। देश ही नहीं, विदेश में भी जो छवि अब राहुल गांधी की बन गई है, उससे भाजपा नेता और भाजपा के समर्थक स्तब्ध हैं। पहले इंग्लैंड के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में उनका संबोधन, फिर अमेरिका के विश्वविद्यालयों में उनका भाषण और वॉशिंगटन में प्रेस कॉन्फ्रेंस आम भारतीय के मन में यह विश्वास दिला दिया है कि एक योग्य राजनेता को धींगामुश्ती और प्रचार के बल पर कैसे नकारा साबित किया जा रहा था। लेकिन, अब देर से ही सही, देश ने यह मान लिया है कि वर्ष 2024 में उनका मत एक योग्य राजनेता के पक्ष में जाएगा, चाहे वह विपक्ष के नेता राहुल गांधी हों या वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

आज दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि राहुल गांधी की अमेरिका यात्रा की चर्चा सब करते हैं, चाहे वह आलोचनात्मक ही क्यों न हो, लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति के निमंत्रण पर राजकीय अतिथि के रूप में गए प्रधानमंत्री भारतवर्ष के लिए क्या कुछ किया, इसकी चर्चा कोई नहीं करता।

अभी से जो इस बैठक में असहमति कई पार्टियों द्वारा और विशेषरूप से आम आदमी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा दिखाई गई, उससे यही लगने लगा है कि यह एकता का प्रयास भी कहीं सच में ताश के पत्ते की ही तरह बिखर न जाए। यदि ऐसा कुछ होता है तो फिर यह निश्चित मानिए वर्ष 2024 में भी वर्तमान सरकार भारी बहुमत से सत्ता में वापस लौट आएगी, लेकिन यदि अप्रत्याशित कुछ होता है तो उसका सारा श्रेय बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ही जाएगा।