दयानंद पांडेय
तो भाजपा तीन राज्यों में अपनी करारी हार से सचमुच डर गई है । उसे अपने आप पर भरोसा नहीं रह गया है । तभी तो मतलब के यार रामविलास पासवान के आगे झुक गई है । ब्लैकमेलर और राजनीतिक मौसम विज्ञानी यानी गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले रामविलास पासवान की ब्लैकमेलिंग के आगे दंडवत हो गई है । पांच की जगह सात सीट देना और फिर अपने कोटे से राज्यसभा सदस्यता भी दे देना यही बताता है ।
गौरतलब है कि एस सी एस टी एक्ट पर संसद में सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला भी मोदी सरकार ने इसी रामविलास पासवान की ब्लैकमेलिंग में पलटा और विधान सभा चुनावों में धड़ाम हो कर इस की कीमत चुका चुकी है । लेकिन भाजपा को अभी भी होश नहीं आया है ।
सात सीट देना चलिए माना , यह राज्य सभा सदस्यता भी अपने कोटे से देने का क्या तुक है भला ? भाजपा के लिए ब्लैकमेलर रामविलास पासवान अब सिर्फ़ गड्ढा हैं । जैसे उपेंद्र कुशवाहा से पिंड छुड़ाया उसी तरह रामविलास पासवान से भी पिंड छुड़ा लेना चाहिए ।
बिहार में चुनाव जीतने के लिए एक नीतीश कुमार का साथ काफी है । इस लिए भी कि अगर 2019 के चुनाव परिणाम में भाजपा संकट में फंसी तो रामविलास पासवान किसी भी सूरत भाजपा के साथ खड़े होने वाले नहीं हैं । सेक्यूलरिज्म की बीन बजाते हुए यू पी ए में सत्ता की साझेदारी करने पहुंच जाएंगे । उन्हें तो येन-केन-प्रकारेण सत्ता सुख और ब्लैकमेलिंग से मतलब है ।