नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) तीन हिंदीभाषी राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अपनी सत्ता गंवाने के बाद अब उस मायूसी से उबरने की कोशिश में जुट गई है. पार्टी ने अब लोकसभा चुनाव में नए क्षेत्रों को जीतने की रणनीति बनाई है. इसके लिए ‘मिशन-123’ शुरू किया गया है. इसके तहत पार्टी ने तटीय राज्यों की 117 में से 119 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. इसके तहत सालभर से इन राज्यों में गतिविधियां दो सौ प्रतिशत तक बढ़ चुकी हैं.
बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने महाराष्ट्र और कर्नाटक को तटीय राज्यों की श्रेणी से अलग रखा है. तमिलनाडु-पुड्डुचेरी की 40, केरल की 20, पश्चिम बंगाल की 42 और ओडिशा की 21 सीटें ही उनके लक्ष्य में शामिल हैं. इन सीटों का जोड़ 123 है. इसमें से 117-119 सीट जीतने का लक्ष्य है.
इनको दी जिम्मेदारी
ओडिशा में धर्मेंद्र प्रधान को जिम्मेदारी सौंपी है. अरुण सिंह और जोएल ओराम उनके साथ रहेंगे. वहीं, पश्चिम बंगाल में कैलाश विजयवर्गीय, रूपा गांगुली, हेमंत विश्वसरमा को जिम्मा सौंपा है. केरल में एम राव, एस गुरुमूर्ति, राजगोपाल को जिम्मेदारी दी है. तमिलनाडु में सीटी रवि, एस गुरुमूर्ति और एम राव को जिम्मेदारी दी है. यहां राजनीतिक हलचल की निगरानी के लिए विशेष कक्ष स्थापित किया है.
20 राज्यों का दौरा
पार्टी के एक पदाधिकारी ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि अगले 100 दिनों में पीएम नरेंद्र मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं को “सक्रिय” करने के लिए लगभग 20 राज्यों का दौरा करेंगे और मतदाताओं से समर्थन मांगेंगे. इनमें पश्चिम बंगाल, असम और ओडिशा जैसे राज्य शामिल हैं, जहां लोकसभा की 77 सीटें हैं. 2014 में मोदी लहर के बावजूद पार्टी इनमें से सिर्फ 10 सीटें ही जीत सकी थी.
नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी के महासचिव ने बताया, “पीएम मोदी सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं और एकमात्र ऐसे उम्मीदवार हैं जो एक स्थिर सरकार प्रदान कर सकते हैं. हम इस बात का लाभ उठाएंगे.”
असम और ओडिशा में रैलियां
इस मिशन के तहत पीएम मोदी के अधिकांश कार्यक्रम सरकारी या सार्वजनिक होंगे. पिछले सप्ताह ‘मिशन 123’ की झलक तब देखने को मिली जब 24 दिसंबर को प्रधानमंत्री ओडिशा में भुवनेश्वर में एक नए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान परिसर का उद्घाटन करने के लिए थे, और फिर खुर्दा में एक रैली की. उनका अगला पड़ाव 25 दिसंबर को असम में ब्रम्हपुत्र नदी पर भारत के सबसे लंबे रेल-सह-सड़क पुल का उद्घाटन करना था. 4 जनवरी को, पीएम असम के सिलचर जाएंगे, जहां बीजेपी ने लोकसभा की 14 में से 11 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. मोदी 5 जनवरी को ओडिशा में वापस आएंगे. जहां वे मयूरभंज में एक रैली करेंगे और 15 जनवरी को एक और बैठक के लिए राज्य में लौटने की संभावना है.
मोर्चों को दिया टारगेट
पार्टी के दूसरे महासचिव ने कहा कि बीजेपी के सात अलग-अलग विशिष्ट मोर्चों को महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और युवाओं जैसे मतदाताओं के बीच पहुंचने का टास्क सौंपा गया है. दिसंबर और मार्च के बीच इन सभी मोर्चों ने आउटरीच योजना को कारगर बनाने के लिए सम्मेलन आयोजित किए हैं. हर मोर्चे को एक विशिष्ट लक्ष्य दिया गया है.
‘नेशन विद नमो’
उदाहरण के लिए महासचिव ने समझाया, पूनम महाजन के नेतृत्व वाली बीजेपी की युवा शाखा को पहली बार मतदाताओं से समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से 14-सूत्रीय कार्यक्रम दिया गया है. 12 जनवरी से ‘नेशन विद नमो’ शुरू किया जाएगा, जिसके तहत स्वयंसेवकों नेटवर्क तैयार होगा, जो युवा मतदाताओं की एक टीम को खड़ा करेगा. युवा आइकन, जिनमें उद्यमी या किसान शामिल हैं, जिन्होंने अपने क्षेत्र में बदलाव लाया है, उन्हें देशभर में चिन्हित किया जाएगा और 2019 के चुनाव में मोदी का समर्थन करने के लिए कहा जाएगा.
‘पहला वोट मोदी’
इसके अलावा ‘पहला वोट मोदी’ (मोदी को पहला वोट) अभियान चलाकर पहली बार के मतदाताओं से एक प्रतिज्ञा ली जाएगी कि वे पहली बार अपने मताधिकार का प्रयोग मोदी के लिए करेंगे. यह भी 12 जनवरी से ही शुरू होगा. इसके लिए 16 से 22 जनवरी के बीच देश के कई हिस्सों में टाउन हॉल कार्यक्रमों की योजना बनाई गई है.
15 हजार नेताओं की बैठक
इसके साथ ही पार्टी अध्यक्ष अमित शाह हर बूथ पर एक टीम को सक्रिय करके बूथ-स्तर की योजना को सुव्यवस्थित करने पर काम करेंगे. जिससे सरकार की योजनाओं के 22 करोड़ से अधिक लाभार्थियों तक पहुंचा जा सके. शाह 11 और 12 जनवरी को दिल्ली में पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में लगभग 15,000 नेताओं को संबोधित करेंगे. यह पहली बार है जब पार्टी इतने बड़े पैमाने पर अपनी परिषद की बैठक आयोजित कर रही है, जिसमें जिला-स्तरीय कार्यकर्ता भी आमंत्रित हैं.
इनका कहना
अशोक विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के सहायक प्रोफेसर और त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा के सह-निदेशक गाइल्स वर्नियर्स ने कहा, बीजेपी के लिए मुख्य चुनावी चुनौती दो गुना है. सबसे पहले, यह मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हाल ही में हार के बाद हिंदी बेल्ट में अधिक से अधिक संभावित नुकसान का चिंतन करना. दूसरा, यह स्पष्ट हो गया है कि बीजेपी का विस्तार का क्षेत्र कुछ पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों तक सीमित है, जिससे नुकसान की भरपाई के लिए पर्याप्त सीटें नहीं मिलीं.
यहां नुकसान की आशंका
वर्नियर्स ने कहा कि इसके अलावा, बीजेपी गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी हिंदी सीट के बाहर कुछ सीटें खो सकती है. हाल के चुनावों को लेकर उन्होंने कहा, मतदाताओं ने अपना मन बना लिया है और कांग्रेस के खिलाफ पारंपरिक मौखिक हमलों को तवज्जो नहीं दी. “यह संभावना है कि प्रधानमंत्री उन क्षेत्रों में अधिक रैलियां करेंगे जहां बीजेपी को विस्तार करने की आवश्यकता है. तथ्य यह है कि वह अपने कार्यकाल की शुरुआत के बाद से बड़ी मात्रा में चुनाव प्रचार कर रहे हैं. अब अधिकांश हिंदी बेल्ट राज्य खेल बिगाड़ने के मूड में हैं, तो ऐसे में यह उन क्षेत्रों में संसाधन और समय बिताने के लिए भी प्रतिकूल साबित हो सकता है, जहां लाभ केवल मामूली हो सकता है.