नई दिल्ली। दिल्ली की सियासत एक बार फिर तिराहे पर खड़ी हो गई है. जिस अंदाज़ में कुछ दिन पहले दिल्ली विधानसभा के अंदर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का नाम लिया गया, 1984 के दंगों के कारण उन्हें मिला भारत रत्न वापस लेने का संकल्प पास हुआ, उससे अरविंद केजरीवाल के अरमानों पर पानी फिर गया है.
अभी पिछले हफ्ते ही करीब-करीब यह तय हो गया था कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगी. दोनों ही पार्टी के बड़े नेता इस बात पर मान गए थे कि अरविंद केजरीवाल की पार्टी पांच सीटों पर चुनाव लड़ेगी और कांग्रेस बाकी दो सीटों पर. लेकिन अब इस गठबंधन में ऐसी गांठ पड़ गई है जिसे केजरीवाल चाहकर भी खोल नहीं पा रहे हैं.
आम आदमी पार्टी के शीर्ष नेताओं के करीबी लोग बताते हैं कि अरविंद केजरीवाल या मनीष सिसोदिया तक को हवा नहीं थी कि दिल्ली विधानसभा के अंदर कुछ ऐसा होने वाला है. केजरीवाल उस वक्त सदन में नहीं थे और सिसोदिया थोड़ी देर के लिए विधानसभा से बाहर गए थे. पार्टी की तरफ से सौरभ भारद्वाज विधायकों को निर्देश दे रहे थे. विधानसभा में उस वक्त विपक्ष के विधायक भी नहीं थे इसलिए किसी भी तरह की गड़बड़ या गफलत होने की संभावना न के बराबर थी. लेकिन कौन जानता था ‘अपनों’ में से ही कोई ऐसा खेल करेगा.
विधानसभा में जो हुआ वह कैमरे पर है. स्पीकर ने जरनैल सिंह द्वारा पढ़े गए संकल्प को पारित करवा दिया. यह मूल प्रस्ताव का लिखित हिस्सा नहीं था इसलिए रिकॉर्ड में नहीं गया. लेकिन यह रिकॉर्ड के लिए था भी नहीं, जनता और अपने नेताओं को दिखाने के लिए था. इसके बाद से कांग्रेस के नेताओं ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ धरने-प्रदर्शन करने शुरू कर दिये. कल तक दोस्ती की बात चल रही थी अब खुलेआम कुश्ती होनी शुरू हो गई. आम आदमी पार्टी के नेताओं ने एक आंतरिक जांच का आदेश दे दिया जिससे पता चल सके कि आखिर ये हुआ तो क्यों हुआ?
कांग्रेस, भाजपा और आम आदमी पार्टी के नेताओं और इन पार्टी के करीबी पत्रकारों से बात करने पर कुछ बातें साफ हो जाती है. पहली, अरविंद केजरीवाल की तीव्र इच्छा है कि वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ बनने वाले विपक्षी मोर्चे में आगे की सीट पर बैठने वाले नेता बनें. महीनों की मध्यस्थता के बाद राहुल गांधी ने अरविंद केजरीवाल के साथ मंच साझा करने का मन बनाया था. दिल्ली में दो बार ऐसा मौका आया जब राहुल गांधी और केजरीवाल एक मंच पर या एक कमरे में दिखे. आम आदमी पार्टी की तरफ से संजय सिंह जैसे नेता यशवंत सिन्हा के जरिए कांग्रेस से बात करने में कामयाब हो गए थे.
पिछले कुछ हफ्तों में कांग्रेस के हाईकमान और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच बातचीत का माहौल बनने लगा था. इसकी खबर कांग्रेस के प्रदेश के नेताओं को भी थी और आम आदमी पार्टी के नेताओं को भी. और बात सिर्फ दिल्ली की नहीं थी. कांग्रेस के साथ मिलकर केजरीवाल हरियाणा की एक और पंजाब की चार सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की चाहत रखते हैं.
लेकिन दिल्ली में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन, अरविंद केजरीवाल से हाथ मिलाने को तैयार नहीं हैं. माकन के करीबी बताते हैं कि जिस दिन उन्होंने सरेंडर कर दिया उन्हें दिल्ली का मुख्यमंत्री बनने का सपना छोड़ना होगा. हरियाणा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा केजरीवाल को हिस्सेदार नहीं बनाना चाहते. और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह अरविंद केजरीवाल की सूरत तक नहीं देखना चाहते. इन ताकतवर नेताओं की सलाह के बावजूद कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में गठबंधन का फॉर्मूला करीब-करीब तय हो गया था. यह गठबंधन खुद राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल मिलकर ऐलान करने वाले थे कि बीच में विधानसभा कांड हो गया.
अंदर की खबर रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि अब अरविंद केजरीवाल बार-बार कांग्रेस नेताओं से संपर्क साधना चाहते हैं, लेकिन दोनों के बीच की लाइन डेड हो गई है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी सिर्फ गांधी परिवार के लिए ही नहीं कांग्रेस परिवार के लिए भी भावनात्मक मुद्दा हैं. जिस अंदाज़ में आम आदमी पार्टी के विधायकों ने उनके बारे में बोला उसे कांग्रेस के कुछ बड़े नेता ठंडा नहीं होने देना चाहते. आम आदमी पार्टी की मुश्किल ये है कि अगर वह अपने सिख विधायकों के खिलाफ कुछ करती है तो दिल्ली के साथ-साथ उसे पंजाब में भी नुकसान उठाना पड़ सकता है.
दिल्ली में भाजपा के लिए यह संजीवनी बूटी जैसा कुछ है. ‘भाजपा कतई नहीं चाहती कि दिल्ली में महागठबंधन बने. केजरीवाल अगर राहुल गांधी के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगे तो एक और एक ग्यारह बन सकते हैं.’ दिल्ली पर नज़र रखने वाले संघ के एक प्रचारक की यह टिप्पणी भाजपा के मन की बात कह देती है. भाजपा इंतजार कर रही है कि दिल्ली में कांग्रेस थोड़ी और मजबूत हो जाए ताकि मोदी विरोधी वोटर कन्फ्यूज हो जाए.
उधर कांग्रेस के दिल्ली वाले नेता चाहते हैं कि आलाकमान उन्हें एक मौका और दे ताकि वे केजरीवाल के गढ़ को तोड़ सकें. आम आदमी पार्टी के कई नेताओं और विधायकों का कहना है कि अगर गठबंधन हुआ तो सिर्फ लोकसभा में ही नहीं विधानसभा में भी होगा. अगर लोकसभा में सात में से दो सीटें दी जा रही हैं तो विधानसभा में सत्तर में से बीस सीटें देनी पड़ सकती है. ऐसे में 17-18 विधायको के टिकट कटने तय हैं.
इसलिए तीनों ही पार्टियों में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो नहीं चाहते कि आम आदमी पार्टी और कांग्रेस एक हो जाएं. विधानसभा में जो हुआ वह कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं थी, कोई मिनट भर की गफलत भी नहीं थी. राजीव गांधी के बारे में जो कहा गया उसकी स्क्रिप्ट तैयार की गई थी.